शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

व्यंग्य मे बड़ी दम है । साहित्य की माँग कम है ।

ब्लाँग लिखना अच्छा लगता है और उससे भी अधिक अच्छा लगता है अधिक से अधिक ब्लाँग पढ़ना । कितने मनीषी और सुधी रचनाकारोँ के रचना संसार से साक्षात्कार का सौभाग्य मिलता है ।
मजेदार तो यह है कि स्वयंभू भी मिले और भूलोक के सहज भी मिले । हमने व्यंग्य के स्थान पर भक्ति एवं श्रृंगार को ब्लाँगोन्मुख किया लेकिन उसकी माँग कम दिखी ।
व्यंग्य के पाठक भी अधिक हैं और टिपकर्त्ता भी लेकिन गालियाँ भी आशातीत मिलती हैं ; शब्दकोश की परिधि से परे ।

व्यस्त हैं
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देश
जनता
जनतन्त्र
इतिहास
भूगोल
पौरुष
पराक्रम
महापुरुष
प्रेरणाएँ
अस्त हैं ।
मानस
कलावन्त
वैज्ञानिक
सौन्दर्य
रचनाधर्मिता
साहित्य
संस्कृति
संगीत
सृजन
संत्रस्त हैं ।
सच्चरित्र पस्त हैं ।
दुश्चरित्र जबर्दस्त हैं ।
बुद्धिजीवी व्यस्त हैं ।
राजनेता अभ्यस्त हैं
इधर से उधर ।
वाह रे ! अधर ! !
अधर पर अधर ?

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

चित्तौड़ मे आयोजित मीरा महोत्सव पर एक छन्द । मीरा

विष दो या मुझे

अमरत्व ही दो

पति मान चुकी

घनश्याम को हूँ ।

इन बन्धनोँ मेँ

बँधना है नहीँ

सब त्याग चुकी

धन धाम को हूँ ।

अपना लिया है

अपने प्रिय को

मन दे चुकी

लोक ललाम को हूँ ।

मन मीरा बना

विष पीना पड़ा

अनुमान चुकी

परिणाम को हूँ ।

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

माँ की असीम शक्ति एक छन्द

अवगाहन मे उस

अमृत तत्त्व के

कौन कहे

अपरूप मे खोया ।

रश्मियाँ दिव्य

विकीर्ण हुई

तो लगा अनमोल

स्वरूप मे खोया ।

साध लिया जब

शाश्वत शक्ति ने

मानस बोध

अरूप मे खोया ।

धार मिली रसधार

अनन्त मेँ

अन्तर रूप

अनूप मेँ खोया ।

शनिवार, 18 सितंबर 2010

एक छन्द : त्यागने वाले मिले ।

रस रंग की बात

करो न अली !

बस रूप को

माँगने वाले मिले ।

सुख जानने वाले

अनेक मिले .

दुख देखकर

भागने वाले मिले ।

सुमनोँ को मिला

जहाँ गन्ध पराग

वहाँ कण्टक

मतवाले मिले ।

कितनी बड़ी त्रासदी

है जग मेँ

अपनाकर

त्यागने वाले मिले ।

शनिवार, 11 सितंबर 2010

एक छंद : विसंगति

जिसको यहाँ कंचन

रूप मिला

उसको प्रिय गेह

मिला ही नही ।

सुमनो को मिला

रस गंध पराग .

परन्तु सनेह

मिला ही नही ।

भ्रमरो ने किया

रसपान सुचारु

कभी अधरोँ को

सिला ही नही ।

प्रिय कैसी विसंगति

है जग की

बिना शूल के

फूल खिला ही नहीँ ।

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

घनश्याम ; एक छंद

छंद में भगवान कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति है । अप्रैल 1998 ।

घनश्याम के अंक

लगी लगी मैं

कर पल्लव बेनु

बनी हुई हूँ ।

चिर साधिका हूँ

मनमोहन की

रति रंग की धेनु

बनी हुई हूँ ।

सखि ! नेह की डोर से

हूँ बँधी मैं

मनमोहन रूप

सनी हुई हूँ ।

स्वर , रश्मियों में

उन्मत्त हूँ मैं

पद पंकज रेनु

बनी हुई हूँ ।

शनिवार, 14 अगस्त 2010

ओ मेरे देश

ओ मेरे देश के सूत्रधार !

तुम लाल किले की

प्राचीर पर खड़े होकर

कब तक छोड़ते रहोगे

मूत्रधार ।

जिसमे अवगाहन करके

आम जनता

स्वतन्त्रता की वर्षगाँठ

मना रही है

और राजनीति

अफसरशाही के साथ

भ्रष्टाचार और

चरित्रहीनता का

च्यवनप्राश खा रही है ।

ऐसे मे कहना पड़ता है

कि

अपने देश मे

दो जंघाओं के बीच का

भूगोल

अर्थशास्त्र की बदौलत

इतिहास बनता है ।

यह भारतीय जनता है ।

रविवार, 8 अगस्त 2010

विभूति नारायण राय का अवसरवाद

महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति भाई विभूति नारायण राय ने महिला साहित्यकारों को छिनाल कह दिया ।

इस मुद्दे पर महिलाओं को ही नहीं अपितु प्रत्येक विवेकशील का उत्तेजित होना स्वाभाविक है ।

कथित प्रगतिशील साहित्यकार कब दुर्गतिशील आचरण करने लगेंगे . जान पाना मुश्किल है । अज्ञेय . धर्मवीर भारती . अमृता प्रीतम . इस्मत चुगताई सहित अनेक साहित्यकार की जीवन कथा इसी व्यथा का संदेश है ।

राय ने किन महिला साहित्यकारों को लक्ष्य करके यह कहा . उनका मानस ही जानता होगा । उनका यह कहना कि आजकल महिलाओं मे एक दूसरे से आगे बढ़कर अपने को छिनाल सिद्ध करने की होड़ लगी है ।

हम यह नही समझ पा रहे हैं कि राय ने यह क्यों नही कहा कि पुरुष साहित्यकार एक दूसरे से बढ़कर महिलाओं को साहित्य मे स्थापित करने हेतु समर्पित हैं ।

कपिल सिब्बल एवं साहित्यकारों के घोर विरोध के चलते फिलहाल कुलपति की कुर्सी जाती देख राय ने माफी माँग ली ।
यही अवसरवाद है ।

बुधवार, 21 जुलाई 2010

छींक

एक छींक हमारी है

जो हवा में

खप जाती है ।

एक छींक

सोनिया जी की है

जो अखबारों में

छप जाती है ।

रविवार, 4 जुलाई 2010

कानून ; मकड़ी का जाला

अपने देश मे कानून

मकड़ी का जाला है

जिसमे मक्खी फँस

जाती है

मच्छर फँस जाता है

झींगुर झन्नाता है ।

हाथी और घोड़ा

चीरता चला जाता है ।

मंगलवार, 22 जून 2010

शार्टकट : दानवता सत्तासीन

ओ मेरे मन !

कोई शार्टकट मारो ।

किसी महापुरुष की

आरती उतारो ।

कोई ऐसा स्विच दबाओ

धरती को ठोकर मारकर

आसमान चढ जाओ ।

उल्लुओं को सूर्य

जाने कब से लग रहा है

दृष्टिहीन ।

आदमी की शक्ल में

मशीन ।

औपचारिकता

घर घर आसीन ।

कृत्रिमता पदासीन ।

मानवता उदासीन ।

दानवता सत्तासीन ।

शुक्रवार, 11 जून 2010

हम तो हैँ कफनचोर राजा ! जनता से कह दो - प्रणाम करें ।

गैस काण्ड होते हैं

होने दो ।

पीड़ित जन रोते हैं

रोने दो ।

मरने दो . त्राहि त्राहि

करने दो ।

हमको निर्द्वन्द राज्य

करने दो ।

अर्जुन हम अपने को
कहते
लेकिन दुर्योधन का
काम करें ।
हम तो हैं कफनचोर
राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।

इण्डरसन के ही हम

सन हैं ।

अपने गुलाम अभी

मन हैं ।

जनता से अपना क्या

रिश्ता ?

अमेरिका अपना

फरिश्ता ?

आओ ! हत्यारों के
साथ रहें .
जनता के कष्ट बनें .
नाम करें ।
हम तो हैं कफनचोर राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।

हम तो जयचन्द

आदिकाल के ।

सबके मुँह बन्द .

हमे पाल के ।

मगरमच्छ नदियों के .

ताल के ।

हम ही पर्याय यहाँ

काल के ।

जनता मर जाय .
देश मिट जाए
फिर भी हम जेबों मेँ
दाम भरेँ ।
हम तो हैं कफनचोर
राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।

शनिवार, 5 जून 2010

......ओह ! फिर भी इतनी भीड़ लोकतन्त्र की दुकान पर ?

मन्त्री

अधिकारी

माफिया

अपराधी

भ्रष्टाचारी

मँहगाई

आसमान पर ।

संविधान

नियम - कानून

नैतिकता

ईमानदारी

चरित्र

सद्भावना

श्मशान पर ।

होटलों मेँ रंगीनियाँ

सन्नाटा मकान पर ।

हम सब की उँगलियाँ

आँख और कान पर ।

फिर भी

इतनी भीड़

लोकतन्त्र की

दुकान पर ।

शनिवार, 29 मई 2010

आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर

अखरे जो बार बार

उसे अखबार

कहते हैं ।

सरके जो बार बार

उसे सरकार

कहते हैं ।

समाचारों को बेचकर

खरीद ले जो कार

उसे पत्रकार

कहते हैं ।

मंगलवार, 25 मई 2010

युवा शक्ति

युवा शक्ति

एक जल वर्षण

युग का आकर्षण

सीपी मे गिरे तो

मोती हो जाती है

अन्यथा समुद्र मे जाकर

खारी हो जाती है ।

मंगलवार, 18 मई 2010

जनता आम सड़क है ।

अपने देश मे
जनता : आम सड़क है ।
जनतंत्र : एक ट्रक है
जिस पर
पब्लिक कैरियर लिखा है
लेकिन पूँजीपतियों का
सामान भरा है ।

ब्रेक : चुनाव
एक्सीलेटर : उपचुनाव
चुँगी : मध्यावधि चुनाव
पंक्चर : इमर्जेन्सी
और हार्न
देश की प्रगति को
बताता है ।
सावधान !
घायल मत हो जाना
जनतंत्र का ट्रक
आता है ।

बुधवार, 12 मई 2010

वेश्या और नेता

वेश्यालय के
मकान नम्बर सात पर
लिखा था -
नेताओँ का प्रवेश
वर्जित ।
क्योंकि उनका धन
हमसे भी अधिक
गलत तरीके से
अर्जित ।

गुरुवार, 6 मई 2010

कसाव को फाँसी ; एक संवाद

( आतंकवाद का वर्चस्व है , आन्तरिक या वाह्य - खुलेआम ग्राह्य )

कसाव को फाँसी के
निर्णय के बाद
मुझे याद आ गयी
अफजल को फाँसी से
छोड़े जाने की फरियाद
जिस पर आज तक निर्णय न हुआ ।
सियारों की मीटिंग मे
क्या हुआ -
हुआ हुआ हुआ
हुक्की हुआ ।

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

जंगलीकरण

जंगलों को काटकर
बसाए जा रहे हैं गाँव
गाँवों का किया जा रहा है
नगरीकरण
नगरों का सौन्दर्यीकरण
और अब स्थिति
यहा तक आ गयी है
कि सौन्दर्य का
होता जा रहा है
जंगलीकरण ।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

गिद्ध

हम एक इंसान हैं
इसलिए परेशान हैं
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।


वन्देमातरम्


अपने यहाँ
पंचायती व्यवस्था : ठर्रा
विधान सभाएँ : ह्विस्की और संसद : रम है ।
यही अपने देश का
वन्देमातरम् है ।

रविवार, 11 अप्रैल 2010

डाँ0 अम्बेदकर जयन्ती पर ( 14 अप्रैल ) आप की ही तरह न जाने कितने हैं वैकल्पिक पत्नियों पर कायम ।

ओ मेरे आराध्य
डाँ0 अम्बेदकर !
आप द्वारा दलितों के
हितों के लिए
किया गया संघर्ष
जिसका उत्कर्ष
हमारे सामने है ।
आपको महापुरुष बनाया
आपके काम ने है ।

आप दलितों के अधिकारों
के लिए लड़ते रहे
पुस्तकें लिखते रहे
पढते रहे
संविधान के अध्याय
गढते रहे ।

न्याय दिलाने के लिए
आप ने सब कुछ किया
बराबरी का अमृत दिया
इसलिए देश आपको
प्रणाम करता है ।
सारा विकास
आपके नाम करता है ।

दलित पुरुष हो या नारी
आपसे देखी नही गयी
लाचारी ।
आपने समानता दिलाने
के लिए बनाए कानून
और स्वयं
तीन तीन पत्नियों के साथ
मनाते रहे हनीमून ।
पूरे देश मे
आपकी जय है ।
गाँधी जी की जय तो
एक अभिनय है ?

ओ मेरे आराध्य !
हम आज तक यह नही
जान पाए कि जिसका
एक तना और
उठा हुआ हाथ
कर रहा हो आम जनता का
आह्वान
बताता हो निदान
और दूसरे हाथ मे शोभायमान संविधान
वह तीन तीन नारियोँ के साथ करता रहा
कानून का सम्मान
अपमान
अनुसंधान या
गर्भाधान ?

आपके न जाने
कितने समर्थक ।
नारियों को कभी नही
समझते हैं निरर्थक ।
आपकी ही तरह
न जाने कितने नेता
अभिनेता
अधिकारी
आज तक हैं
वैकल्पिक पत्नियों पर कायम ।
क्या इसका उत्तर दे पाएँगे
जार्ज
थरूर
पासवान
मुलायम ?

ऐसे मे कहना पड़ता है कि
सुख
समृद्धि
और विकास के क्षेत्र मे
देश इतना हो गया है दक्ष । कि चौदह वर्षीया का वक्ष
पच्चीस वर्षीया के समकक्ष ।
जिसे देखकर
आश्चर्यचकित है
कालिदास का यक्ष ।

इस समय वीवीआईपी
क्षेत्र मे
वैकल्पिक पत्नियों का चलन है ।
वास्तविक पत्नी मे
सीलन है
गलन है
जलन है ।

इन सब लोगों का
नारियों के भौगोलिक वातावरण पर जारी है शोध
फिर भी महिला आरक्षण का विरोध ?
जल मे रहकर मगर से बैर तैर सके तो तैर ।

ओ मेरे आराध्य
अम्बेदकर !
आप अपने को देखिए
और देखिए दलितों के मसीहा मान्यवर काशीराम को
जो मान्यवर होते हुए भी
आजन्म कुँआरे रहे
ऊँची नौकरी छोड़ी
दलितों के बीच खड़ा कर दिया मजबूत संगठन
दिलवायी सत्ता ।
समानता
न्याय
अधिकार के लिए लड़ते रहे लगातार ।
उनके मन मे कभी नही आया
आपकी तरह तीन तीन
पत्नियों का विचार ।
इसलिए आने वाला समय
काशीराम के गुण गाएगा । इतिहास कथनी और करनी की समरूपता को
सिर झुकाएगा ।


नाम

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं । ( इस रचना का दृश्य प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध है )

महाबली हम , बाहुबली हम ।
आतंकी हम . महाछली हम ।
रौंद रहे हैँ कली कली हम ।
लोकतंत्र की परखनली हम ।

न्याय और अन्याय हमीं से ।
संकट और उपाय हमीं से ।
सभी लोग निरुपाय हमीं से ।
जनमानस असहाय हमी से ।

सत्यवादियों को देखा तो
लगा सभी सिरफिरे हुए हैं ।
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

झूठे सब आश्वासन बाँटे ।
बिखराए राहो में काँटे ।
ताल तलैया झाबर पाटे ।
नैतिकता को मारे चाँटे ।

हिंसा , दुराचार के भ्राता । अपराधों से सीधा नाता ।
जातिवाद के आश्रयदाता । काला पैसा नकली खाता ।

मेरे रुतबे के आगे तो
सब रुतबे किरकिरे हुए हैं । हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

शासन और प्रशासन अपना ।
दल अपना सिंहासन अपना ।
धौंस धाँय दुःशासन अपना ।
भाषण अपना राशन अपना ।

नदी - नहर , धन - धरती अपनी ।
बंजर अपनी , परती अपनी ।
जो भी है सब अपना अपना ।
सफल हुआ जीवन का सपना ।

गिरे हुए जो लोग यहाँ हैं । इधर उधर या जहाँ तहाँ हैँ ।
मत खोजो वे कहाँ कहाँ हैं । जगह जगह हैँ
यहाँ वहाँ हैँ ।

हम इतना गिर गये साथियो !
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

रविवार, 28 मार्च 2010

हम तो इतना गिरे हुए हैं ( सामयिक परिदृश्य को व्यक्त करतो हुई रचना )

शब्दजाल के चतुर खिलाड़ी ।
लोकतन्त्र की दशा बिगाड़ी ।
स्वार्थ सिद्धि मे
सदा जुगाड़ी ।
इनके आगे सभी अनाड़ी ।

कुर्सी ही सिद्धान्त हमारा ।
यही धर्म वेदान्त हमारा ।
अवसर देखा बदला नारा ।
खोज रहे नित नया सहारा ।

तरह तरह के राग अलापे ।
सारे सुर बेसुरे हुए हैं ।
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओँ से घिरे हुए हैं ।

हमने गिर कर क्या क्या पाया ।
सच बिसराया
छल अपनाया ।
षडयन्त्रों को गले लगाया ।
भ्रष्टों के ही तेल लगाया ।

नियम और कानून तोड़कर ।
संविधान का स्वर
मरोड़कर ।
मानवता का शीष फोड़कर ।
जनमानस के हाथ
जोड़कर ।

ऊँचे पद की शपथ
ग्रहण कर ।
लोकतन्त्र के सिरे
हुए हैं ।
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओँ से घिरे हुए हैं ।

बिन पैसा हम काम न करते ।
सुबह न करते
शाम न करते ।
ऐश बिना आराम न करते ।
बिना सुन्दरी जाम न भरते ।

पैसा मिले
विचार न कोई ।
हमको दे उधार ले कोई ।
धन के लिए
सभी कुछ हाजिर ।
पद के लिए
सभी कुछ हाजिर ।
बालू से भी तेल निकाला
जन गण मन
सब पिरे हुए हैं ।
हम तो इतना गिरे हुए हैँ । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

माँ बहनो का फर्क न जाना ।
देश का बेड़ा गर्क न जाना ।
स्वर्ग न जाना
नर्क न जाना ।
स्वार्थ देखकर तर्क न जाना ।

हालीवुड वालीवुड अपना ।
लगा फिल्म मे पैसा अपना ।
हीरो हीरोइन का सपना । सबको नाम हमारा जपना ।

हमे देख कर खजुराहो के
भित्ति चित्र बे सिरे
हुए हैँ ।
हम तो इतना गिरे हुए हैँ ।
गिरे हुओँ से घिरे हुए हैँ ।

सोमवार, 22 मार्च 2010

अमर सिंह ने सोनिया और राहुल गाँधी की प्रशंसा की । इन्हे रास्ता चाहिए । दिगम्बर चाय को नाश्ता चाहिए ।



खण्डहर ने कहा
हम महलोँ के गुलाम है
एक महल से बाहर खदेड़े गये हैं
इस समय गुमनाम हैं ।
हमारे पीछे की भीड़
छट चुकी है ।
सत्ता की प्रेमिका भी
दूसरोँ से पट चुकी है ।
कैसे हो सकेगी
राज्य सभा मे वापसी ।
चरम सीमा पर है
दुश्मनी आपसी ।

अब हम राहुल सोनिया के
गीत गाएंगे ।
आवश्यकता पड़ी तो
कण्डे पर भी मक्खन
लगाएंगे ।
सोनिया जी इनका भला करे
ताकि गुमशुदा लोगोँ
की भी दुकान चला करे ।



भाई साहब ! इसी तरह
हाथ पैर मारिए ।
कहीँ न कहीँ तो सुधि
ली जाएगी
प्रशंसा के वचन उचारिए ।
कुर्सी बहुत कुछ करवाती है ।
आप कहते
यह ठकुरसोहाती है ।

मंगलवार, 16 मार्च 2010

मान्यवर काशीराम जयन्ती के आयोजन से सिद्ध है कि महापुरुष कितने फलदायी एवं धनदायी हैं । काशीराम तुम्हारी जय हो ।

काशीराम तुम्हारी जय हो । जन्मदिवस पर धन संचय हो ।
रुपयोँ की हर तरफ विजय हो ।
भूख , लूट हो या कि प्रलय हो ।

मायावती हमारी बहना।
उनके आगे मत कुछ कहना ।
जिसको वृन्दावन मे रहना । उसको पड़ता सबकुछ सहना ।

अफसर , नेता , चमचोँ आओ ।
नाचो , गाओ , केक कटाओ । जो लाए हो उसे चढाओ ।
करो बन्द-ना कुर्सी पाओ ।

लोकतन्त्र का कभी न क्षय हो ।
काशीराम तुम्हारी जय हो ।

यह हजार के नोट कहाँ है । इन नोटोँ मे वोट कहाँ हैं ।
वोट जहाँ हैँ वहाँ गरीबी ।
है भौजी गरीब की बीबी ।

उसको कोई कहे न बहना ।
जो भी कहो ? उसे चुप रहना ।
उस बहना का दर्द न जाना । बहनो को किसने पहचाना ?

यह हजार के नोट हार में ।
इससे ज्यादा भरे कार में ।
देते हैं सब इन्हे प्यार में ।
गर्दन फिर भी तनी भार में ।

काशीराम तुम्हारी जय हो । महापुरुष ? किसको संशय हो ।

काशीराम महामानव थे ।
मनुवादी सारे दानव थे ।
रहे कुँआरे जनता के हित ।
माया ने सेवा की नित ।

उनके सपने सच होते हैं ।
माया छोड़ सभी रोते हैं ।
जहाँ नोट हैँ वहीँ देश है ।
नोट भरे होँ , कौन क्लेश है ?

रुपिया लाओ उसे बिछाओ ।
रुपिया पियो उसे ही खाओ ।
रुपिया लोकतन्त्र की जड़ है ।
लोकतन्त्र रुपियोँ की फड़ है ।
फड़ पर यही खेल जारी है । आपस मे मारामारी है ।
यही जयन्ती यही समर्पण । जनता अपनो से हारी है ।

काशीराम तुम्हारी जय हो ।
बार बार ही धन संचय हो ।

शनिवार, 6 मार्च 2010

रति के पीछे पीछे काम साधु संत के काम तमाम

( इस समय साधु संतो की रंगीनियाँ चर्चा मे हैँ । सेक्स स्कैँडिल के केन्द्र आश्रम बन गये हैँ । यही साधु संत जो अपराध की दुनिया मे शोभायमान हैँ , धर्म के मर्म का मंचोँ से नियमन करते हैँ - महिने दो महिने जेल फिर वही खेल )

दिन मे भगवान हो गये ।
रात को जवान हो गये ।

दे दिया उपदेश धर्म का
तुरत आसमान हो गये ।

शिष्योँ के वाण छोडकर
स्वयँ ही कमान हो गये ।

शिष्या को परिणय मे बाँध
बेसुध मुस्कान हो गये ।

आश्रम से कर दिया पलायन छूमन्तरध्यान हो गये ।

2

रति के पीछे पीछे काम ।
इसी ध्यान मे आठो याम ।

धर्म कर्म पर भाषण इनका ।
सबसे ऊँचा आसन इनका ।
आश्रम मे अफरा तफरी है
संध्या ,हवन ,कुशासन इनका ।

हत्या , कब्जा , अनाचार से
कोठी , आश्रम और कार से
षडयन्त्रोँ से कभी प्यार से
सँस्कार सब तार तार से


सिसक रहे फैला कोहराम । रति के पीछे पीछे काम ।

धर्मक्षेत्र के महापुरुष हैँ
सभामध्य यह लव हैँ कुश हैँ पयोमुखम इनकी शैली है
धन से भरी हुयी थैली है ।

उपदेशक हैँ , साधुवेश है ।
माया मोह न रहा शेष है ?
सजा आरती शंख फूँकते
मिटा रहे हर एक क्लेश हैँ ?
भारत माँ का काम तमाम ।
रति के पीछे पीछे काम ।

मृगछाला पर मृगनयनी का आगे पीछे मृदुबयनी का
बदल दिया भूगोल रात को है प्रणाम इस करामात को

साधु संत निशिदिन बसंत हैँ
शिष्याओँ के यही कंत हैँ ।
जो कुकर्म हैँ सब अनंत हैँ ।
आदि अंत मे यह हलन्त हैँ ।

कहाँ राम ? जब इतना नाम रति के पीछे पीछे काम ।

गुरुवार, 4 मार्च 2010

आलोक मेहता ब्लागोँ की स्वायत्तता से क्षुब्ध (संपादकीय, नई दुनिया , होली विशेषाँक )

आलोक मेहता जी मँजे पत्रकार हैँ । नई दुनिया के होली अंक मे उन्होने ब्लागो की निरंकुशता पर खासी चिन्ता व्यक्त की है । ब्लागो के नामोँ पर भी उन्हे कष्ट है । इसके साथ ही बिना संपादित और सेंसर के ही ब्लागों का वेव पर आ जाना आलोक जी के लिए किसी गर्भस्थ संकट का कारण भी हो सकता है , विशेषतः पत्रकारिता के लिए ।

ब्लाग पर कपडा फाड शीर्षक से बुरा न मानो होली है का बहाना बनाकर जो भी लिखा गया , वह वास्तव मे विचारणीय है । राजनीति, पत्रकारिता , धर्म, शिक्षा , प्रशासन सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रोँ मे आंशिक या आनुवांशिक पतन हुआ है । ऐसे मे आलोक जी ! समाज के नियामको का कार्य उसे सही दिशा देने का है , हँसी की विषयवस्तु बनाने का नही । वैसे आलोक जी के विचार होली के रँग मे सराबोर होते हुए भी आत्ममँथन का अध्याय जोडता है ।

अनायास-


कवि धूमिल की पँक्तियाँ-
अपने देश मे वेश्याएँ
वक्तव्य दे रहीँ आत्मशोध पर ।
और हिजडे शोध कर रहे लिँगबोध पर ।

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

होली के पावन पर्व पर आनन्द आपके साथ रहे । महामूर्ख कवि सम्मेलन मे राही जी मूर्खाधिराज घोषित सीतापुर- होली के अवसर पर प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष आयोजित महामूर्ख कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ । सनकी. डा0 मंजू . कमलेश धुरन्धर . रजनीश मिश्र . चैतन्य चालू .केदार नाथ शुक्ल .अविनाश त्रिवेदी ,विशेष शर्मा ,उदय प्रताप त्रिवेदी , आशुतोष श्रीवास्तव की कविताओँ को सुनकर श्रोता लोट पोट हो गये । पूर्व केन्द्रीय मन्त्री रामलाल राही मूर्खाधिराज घोषित किए गये । राही जी ने कहा हमारी तरीके से प्रत्येक राजनेता को अपनी मूर्खता पर गर्व है । सफल संचालन कमलेश मृदु ने किया । स्वागत अरुणेश मिश्र ने व धन्यवाद गोपाल टण्डन ने किया ।

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

ओ मेरे युगचारण !

बिना पुलिस के
कैसे संभव है
होली
दीवाली
ईद
मोहर्रम
कुम्भ
चुनाव
मंत्रीजी का भाषण
माननीयोँ का शहर
या गाँव मे निकलना


राशन
आपदा राहत
मनरेगा की मजदूरी का वितरण
जुलूस
धरना -प्रदर्शन
के आयोजन
बिना पुलिस के
कैसे हो पाएंगे ?
ओ मेरे देश बोलो !
इस सडाँध भरी राजनीति को हम सब
कितने दिन और ढो पाएँगे ?

अधिकारी कहते हैं
हम रिश्वत मे छोटे नोटों की गड्डियाँ नही लेते
कौन घण्टोँ गिने
पाँच या हजार के नोटोँ की
गड्डियाँ लाइये
आनन फानन मे
काम करवाइये
इस हाथ दीजिए
उस हाथ दीजिए

राजनेता कहते है
नोट नही
प्रकार मे रिश्वत दीजिए
फाइव स्टार मे
काम का परिणाम लीजिए
बाबू अब भी नोटोँ और
बोतलोँ मे फँसे है
हम सब लोकतन्त्र के
समारोह मे बहुत
गहरे तक धँसे हैँ

ऐसे मे
माननीय न्यायालय
और आमजनता
खोज रही है
नक्सलवाद के कारण
इसका किस तरह से
उत्तर दे पाएगे चारण
ओ मेरे युगचारण !!

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

जब हम पान खाते हैं तो देशभक्त हो जाते हैँ

जब हम पान खाते हैँ
तो हमे लगता है कि हम
पूरे देश को चबाते हैँ
और जो अपनी अपनी
गाडियों मे तिरंगा लहराते है वे देशभक्त कहे जाते हैँ
लेकिन ऐसा नही है
जो लोग पान खाते हैं
वह देशभक्त हो जाते हैं
और जो तिरंगा लहराते हैँ
वे पूरे देश को चबाते हैँ


यह तिरंगा क्या है ?
यह पान क्या है ?
हरा हरा पत्ता है
सफेद सफेद चूना है
केसरिया कत्था है
जिसके बीच मे
चक्रदार सुपाडी है
इलायची : हमारी संस्कृति
की गंध है
लौंग : हमारे पराक्रम की
सुगंध है
तम्बाकू : हमारे देश का
भ्रष्टाचार है
किवाम : छाया हुआ अनाचार है
इसलिए जब हम कभी पान खाते है
तो हमे लगता है कि
हम पूरे देश को चबाते हैं
और जो अपनी अपनी
गाडियों पर तिरंगा लहराते हैं
वे देशभक्त कहे जाते हैँ ।

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

प्रेमिकाएँ जामुन हैँ

प्रेमिकाएं जामुन हैँ

खट्टी मीठी

चिकनी

सुन्दर

आकर्षक

गूदेदार

स्वादिष्ट

कालीघटा वाली

गुठलीदार

इसे नमक के साथ खाइए

पूरा आनन्द पाइए

कुछ लोग इसे बिना

नमक के

खाते हैँ

उन सब के मुँह

बकठाते हैँ

जामुन का रंग पक्का
बिल्कुल पक्का
इन्द्रधनुषी
मिटाए मिटता नहीँ
छुटाए छुटता नहीँ

आप कहीँ से भी

जामुन खाकर आइए

चाहे जितना छिपाइए

पता चल जाएगा

ऐसे मेँ कोई

भला आदमी किस तरीके

से घर के बाहर

जामुन खाएगा

जामुन के शौकीन
इसे मेले से
ठेले से
बाजार से
सडक से
खरीद कर लाते हैँ
फिर इसे इत्मीनान से खाते हैँ

जो बेहद शौकीन हैँ

वह इसे पेड पर चढकर

खाते हैँ

कभी कभी जामुन खाने

के चक्कर मेँ

हाथ पाँव भी

टूट जाते जाते हैँ

मामला तब रोचक

हो जाता है

जब जामुन के स्वाद मे

खोए हुए लोग

स्वयँ भी जामुन के साथ
टूट जाते हैँ

और गिरते समय

प्राण भी छूट जाते हैँ ।
पेड

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

भाजपा ने कहा - हम मस्जिद बनवाएगे

अपने देश मे जब
आम मुसलमान नमाज पढता है
तो इंसानियत को राह मिलती है
और जब आम हिन्दू
राम राम कहता है
तो आनन्द की थाह मिलती है
लेकिन जब फिरकापरस्त
नमाज पढता है
तो जनमानस उदास होता है
और जब राजनेता राम राम कहता है
तो राम को
वनवास होता है ।

कहो तिवारी कहाँ चले !! नारायण भाई , नारायण !!

राजनीति के देवालय मे
वेश्यालय का रूप देखिए ।
ऊपर से चिकने चुपड़े हैँ
अन्दर रूप कुरूप देखिए ।

कैसे कैसे दुर्योधन हैँ
काले मन हैँ , उजले तन हैँ ।
क्या करते हैँ सभी जानते
इनके पास नही दरपन हैँ ।

इज्जत लेकर बढे पले ।
कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण !!

डिब्बे च्यवनप्राश के खाए
तभी छियासी के हो पाए ।
महिलाओँ को हीँग समझ कर
व्यञ्जन तरह तरह के खाए ।

जितनी अधिक नीचता जिसकी
उतनी ऊँची कुर्सी उसकी ।
अनाचार के सेमिनार मे
गणना करेँ कहाँ तक किसकी ।

मूल्यवान हैँ सडे गले ।

कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण ।

त्यागपत्र देने से क्या है
इज्जत ले लेने से क्या है ।

राजकाज हैँ , रखा ताज है
ऐसे मे फिर कहाँ लाज है ।

साम दाम है ,राम राम है
शीलहरण तो सुबह शाम है ।
यही काम है , यही जाम है
चमक रहा हर तरफ नाम है ।

संगी साथी भले भले ।

कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण ।

राजेन्द्र अवस्थी : काल चिँतन की शरण मेँ . श्रध्दाञ्जलि

कादम्बिनी के संपादन में काल चिँतन का बोध कराने मे निष्णात सुधी साहित्यकार राजेन्द अवस्थी काल के कराल हाथोँ छले गये । साहित्य तथा पत्रकारिता को उनका योगदान स्मरणीय रहेगा ।

श्रध्दाञ्जलि ।




क्या काल चिंतन को साहित्य माना जाएगा ?

कादम्बिनी की वर्तमान दशा देखकर आपको कैसा प्रतीत होता है ?


कादम्बिनी के संपादक -

रामानन्द दोषी
राजेन्द्र अवस्थी
कन्हैया लाल नंदन
मृणाल पाण्डेय

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

RAFIQ SADANI KO SHRADHANJALI

kavi sammelan se vapas aate samay gonda ke pas car durghatagrast hone se hasy ke mashhur kavi rafiq sadani ki moit se kavi jagt dukhi hai,hardik shradhanjali.

antas ki ly rkhte hai jivan mei.
anushashan ki argala nhi rkhte
aksar bchate hai milne julne se
milte hai to fasala nhi rkhte.
awaj talkh hai tikhi hai to hai
hm do swar wala galaa ....aaa nhi rkhte .
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- SHIVAOM AMBAR