( इस समय साधु संतो की रंगीनियाँ चर्चा मे हैँ । सेक्स स्कैँडिल के केन्द्र आश्रम बन गये हैँ । यही साधु संत जो अपराध की दुनिया मे शोभायमान हैँ , धर्म के मर्म का मंचोँ से नियमन करते हैँ - महिने दो महिने जेल फिर वही खेल )
दिन मे भगवान हो गये ।
रात को जवान हो गये ।
दे दिया उपदेश धर्म का
तुरत आसमान हो गये ।
शिष्योँ के वाण छोडकर
स्वयँ ही कमान हो गये ।
शिष्या को परिणय मे बाँध
बेसुध मुस्कान हो गये ।
आश्रम से कर दिया पलायन छूमन्तरध्यान हो गये ।
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रति के पीछे पीछे काम ।
इसी ध्यान मे आठो याम ।
धर्म कर्म पर भाषण इनका ।
सबसे ऊँचा आसन इनका ।
आश्रम मे अफरा तफरी है
संध्या ,हवन ,कुशासन इनका ।
हत्या , कब्जा , अनाचार से
कोठी , आश्रम और कार से
षडयन्त्रोँ से कभी प्यार से
सँस्कार सब तार तार से
सिसक रहे फैला कोहराम । रति के पीछे पीछे काम ।
धर्मक्षेत्र के महापुरुष हैँ
सभामध्य यह लव हैँ कुश हैँ पयोमुखम इनकी शैली है
धन से भरी हुयी थैली है ।
उपदेशक हैँ , साधुवेश है ।
माया मोह न रहा शेष है ?
सजा आरती शंख फूँकते
मिटा रहे हर एक क्लेश हैँ ?
भारत माँ का काम तमाम ।
रति के पीछे पीछे काम ।
मृगछाला पर मृगनयनी का आगे पीछे मृदुबयनी का
बदल दिया भूगोल रात को है प्रणाम इस करामात को
साधु संत निशिदिन बसंत हैँ
शिष्याओँ के यही कंत हैँ ।
जो कुकर्म हैँ सब अनंत हैँ ।
आदि अंत मे यह हलन्त हैँ ।
कहाँ राम ? जब इतना नाम रति के पीछे पीछे काम ।
शनिवार, 6 मार्च 2010
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6 टिप्पणियां:
सशक्त शब्द प्रहार
gazab hai..........
ab lekhni ki dhaar ka spast ahsaas ho raha hai..........
ati sundar ji
kavya ki samporn niyamo our vahro ke sath likhi huee .........ek achcahi our sachchi kavita hai........
Ye kafee prabhavshali kavita hai. Bahdai Aapko!
वाह! क्या खूब पाखंडियों का चित्रण किया है.
कलयुग है यह!कहते हैं अभी और उम्र बाकि है इसकी!
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