महाबली हम , बाहुबली हम ।
आतंकी हम . महाछली हम ।
रौंद रहे हैँ कली कली हम ।
लोकतंत्र की परखनली हम ।
न्याय और अन्याय हमीं से ।
संकट और उपाय हमीं से ।
सभी लोग निरुपाय हमीं से ।
जनमानस असहाय हमी से ।
सत्यवादियों को देखा तो
लगा सभी सिरफिरे हुए हैं ।
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।
झूठे सब आश्वासन बाँटे ।
बिखराए राहो में काँटे ।
ताल तलैया झाबर पाटे ।
नैतिकता को मारे चाँटे ।
हिंसा , दुराचार के भ्राता । अपराधों से सीधा नाता ।
जातिवाद के आश्रयदाता । काला पैसा नकली खाता ।
मेरे रुतबे के आगे तो
सब रुतबे किरकिरे हुए हैं । हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।
शासन और प्रशासन अपना ।
दल अपना सिंहासन अपना ।
धौंस धाँय दुःशासन अपना ।
भाषण अपना राशन अपना ।
नदी - नहर , धन - धरती अपनी ।
बंजर अपनी , परती अपनी ।
जो भी है सब अपना अपना ।
सफल हुआ जीवन का सपना ।
गिरे हुए जो लोग यहाँ हैं । इधर उधर या जहाँ तहाँ हैँ ।
मत खोजो वे कहाँ कहाँ हैं । जगह जगह हैँ
यहाँ वहाँ हैँ ।
हम इतना गिर गये साथियो !
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
20 टिप्पणियां:
laajawaab rachnaa. saral shbad, saamaajik charitron ki vyaakhaa laybaddh. pasand aane waali tukbandi.
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
अरुणेश जी का कवि एवं व्यक्ति प्रियता, शिवता व सजगता से सम्प्रक्त होने के साथ मस्त उत्साह व सहजता का अद्भुत रंगमंच है
पच्चीस वर्षो से वे अपने प्रखर सामायिक साहित्य के साथ हमारे पास है हमारे मित्रो के लाडले है हम इस संयोग के अभिमानी है
बहुत सुन्दर और सटीक!
Pahli baar aapke blog par ana hua.Rachnayen gehra asar chodti hain.shubkamnayen.
aapki rachna kafi prabhavshaali lagi
न्याय और अन्याय हमीं से ।
संकट और उपाय हमीं से ।
सभी लोग निरुपाय हमीं से ।
जनमानस असहाय हमी से
गिरे हुए जो लोग यहाँ हैं । इधर उधर या जहाँ तहाँ हैँ ।
मत खोजो वे कहाँ कहाँ हैं । जगह जगह हैँ
यहाँ वहाँ हैँ ।
behad shaandaar ,aap aaye behad khushi hui ,aapki salah amrit hai ,shayad isse behtar kar pau .shukriyaan.
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं
wah! 100 % truth
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ........sahi kaha
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! लाजवाब रचना ! बधाई!
ek bahut hi jivant rachna.ati uttam.
bauhat achcha likha hai aapne...
हम इतना गिर गये साथियो !
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?
हम तो इतना गिरे हुए हैं ।
गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।
आपकी रचना प्रभावित करती है .....!!
यही तो विडंबना है....!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
bemisaal rachana.
बहुत अच्छी प्रस्तुति....सारे दृश्य आँखों के सामने आ गए....बढ़िया कटाक्ष है...
bahut hi achhi lagi aapki rachana ek kranti jagati hui si.
poonam
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
हम इतना गिर गये साथियो !
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।
Gazabki sashakt lekhni hai!
सिर्फ एक शब्द ही काफी है इस रचना के लिए "लाजवाब"...
इतने खास अंदाज़ से आपने लफ़्ज़ों को पिरोकर ये रचना गढ़ी है कि मेरे जैसे नए-नवेले ब्लोगिये को बहुत प्रेरणा मिलेगी...शुक्रिया.
एक टिप्पणी भेजें