हम एक इंसान हैं
इसलिए परेशान हैं
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।
वन्देमातरम्
अपने यहाँ
पंचायती व्यवस्था : ठर्रा
विधान सभाएँ : ह्विस्की और संसद : रम है ।
यही अपने देश का
वन्देमातरम् है ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
29 टिप्पणियां:
वाह क्या करारा व्यंग है......"
हम एक इंसान हैं इसलिए परेसान हैं
आप गिद्ध हैं इसलिए प्रसिद्ध हैं!
सच कहा आपने, यही हाल है, बहुत ही सुन्दर रचना
हम एक इंसान हैं
इसलिए परेशान हैं
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं......vaah bahut sundar vyangya.
यह दोनो रचनाएँ 1982 जून की हैँ , जो 1000 से अधिक पत्र - पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं । हमारी मंच की लोकप्रिय रचना ।
आप की प्रतिक्रिया हमे दिशा देगी ।
...बहुत खूब ... लाजवाब!!!
waah......vyangya ka tikha sargarbhit baan
bahut hi behtareen rachna..
yun hi lkihte rahein.....
itani si kavita me kitani gahari baat kah dee hai aapne. mujhe aapse prerana milti hai.
poonam
यह दोनो रचनाएँ 1982 जून की हैँ , जो 1000 से अधिक पत्र - पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं । हमारी मंच की लोकप्रिय रचना ।
--कविता ही तारीफ योग्य है। जिस समय यह लिखा गया उस समय के लिए करारा व्यंग्य है मगर वर्तमान मे स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि यह अच्छा व्यंग्य हो गया है।
-गिद्ध खत्म हो गए
गिद्धों का स्थान अब नरभक्षियों ने ले लिया है
ठर्रा भी असली नहीं मिलता
मिलती है जहरीली शराब
--व्यंग्यकार क्या करें जमाना तेजी से बदल रहा है जब तक लोग समझते हैं तब तक देर हो चुकी होती है।
वाह मज़ा आ गया .क्या खूब कहा आपने बहुत ही सुन्दर !!!
वाह, क्या बात कही है आपने । दुख की बात है कि लोग यहाँ गिद्ध बनकर प्रसिद्ध होने मे शर्म महसूस नहीं करते ।
realy good one
realy good one
Vartmaan ku-vywastha se upji ek anugunj..... ek buland aawaj.....
Anukarniya prayas......
वाह! बहुत सुन्दरता से व्यंग्य किया है आपने! बहुत खूब! बधाई!
अपने यहाँ
पंचायती व्यवस्था : ठर्रा
विधान सभाएँ : ह्विस्की और संसद : रम है ।
यही अपने देश का
वन्देमातरम् है ।
बहुत खूब ....!!
यही कविता हजार से अधिक पत्र पत्रिकाओं में .....??
जबकि हर पत्रिका की मांग होती है की कविता अप्रकाशित हो ....!!
मुझे तो ५० से ज्यादा पत्रिकाओं के नाम भी नहीं पता .....
अरुणेश जी एक सिफ़र ज्यादा तो नहीं लग गया कहीं गलती से ....??
आदरणीया हरकीरत बहन ! सादर अभिवादन . आप जो भी संख्या समझें . स्वीकार्य है ।
समस्त प्रतिक्रियाएँ मनीषियों की हैँ , विनम्र भाव एवं आभार ।
जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर...इंतजार ...बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..
भले ही ये रचनाएँ १९८२ की हों....पर अभी भी कत्क्ष करने में पूर्णतया: सक्षम हैं...बहुत बढ़िया व्यंग
वाह क्या चित्रण किया है..सोच रहा हूं कि मैं भी आदत डाल लूं ताकि संसद या विधानसभा तक आसानी से पहुंचा जा सके।
व्यंग की इतनी तीखी धार घायल करती है अंदर तक ... आज भी उतना ही प्रासंगिक जितना १९८२ में था ...
एक सार्वकालिक व्यंग
रचना, मार्मिक,तीक्ष्ण
एवं प्रभावशाली....
और भी बहुत कुछ
bahut hi sunder.
गहरे भाव लिए हुए
व्यंग्य रचना के लिए बधाई!
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।
वाह जी ! बढ़िया व्यंग्य है ...
हम एक इंसान हैं
इसलिए परेशान हैं
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।
bahut badhiyaan
bauhat sahi vyang kiya hai aapne...ek acchi soch chahiye cheezein badalne ki...but our aim shud be improvement and not only compalining......
एक टिप्पणी भेजें