शनिवार, 18 सितंबर 2010

एक छन्द : त्यागने वाले मिले ।

रस रंग की बात

करो न अली !

बस रूप को

माँगने वाले मिले ।

सुख जानने वाले

अनेक मिले .

दुख देखकर

भागने वाले मिले ।

सुमनोँ को मिला

जहाँ गन्ध पराग

वहाँ कण्टक

मतवाले मिले ।

कितनी बड़ी त्रासदी

है जग मेँ

अपनाकर

त्यागने वाले मिले ।

शनिवार, 11 सितंबर 2010

एक छंद : विसंगति

जिसको यहाँ कंचन

रूप मिला

उसको प्रिय गेह

मिला ही नही ।

सुमनो को मिला

रस गंध पराग .

परन्तु सनेह

मिला ही नही ।

भ्रमरो ने किया

रसपान सुचारु

कभी अधरोँ को

सिला ही नही ।

प्रिय कैसी विसंगति

है जग की

बिना शूल के

फूल खिला ही नहीँ ।

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

घनश्याम ; एक छंद

छंद में भगवान कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति है । अप्रैल 1998 ।

घनश्याम के अंक

लगी लगी मैं

कर पल्लव बेनु

बनी हुई हूँ ।

चिर साधिका हूँ

मनमोहन की

रति रंग की धेनु

बनी हुई हूँ ।

सखि ! नेह की डोर से

हूँ बँधी मैं

मनमोहन रूप

सनी हुई हूँ ।

स्वर , रश्मियों में

उन्मत्त हूँ मैं

पद पंकज रेनु

बनी हुई हूँ ।