tag:blogger.com,1999:blog-73418328429301602622024-03-13T18:22:26.888-07:00चरैवेति चरैवेतिसमसामयिक विषयों पर साम्प्रतिक साहित्य व समाचारअरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.comBlogger36125tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-78882673956882594922011-01-08T06:37:00.001-08:002011-01-08T06:37:17.282-08:00यह भारत माँ के कलंक हैं । इनसे बचकर रहना मित्रोँ !सत्य अहिंसा परम धर्म है ।<br />
<br />
भेदभाव मत सहना<br />
मित्रों ।<br />
<br />
शासन मे बैठे लोगों के<br />
<br />
बड़े बड़े घोटाले देखे ।<br />
<br />
नैतिकता पर ताले देखे ।<br />
<br />
नेता . अफसर और<br />
<br />
माफिया<br />
<br />
हम बिस्तर<br />
<br />
हम प्याले देखे ।<br />
<br />
राष्ट्रवाद का स्वर<br />
<br />
अलापते<br />
<br />
भ्रष्ट आचरण वाले देखे ।<br />
<br />
ऊपर से चिकने चुपड़े हैँ <br />
अन्दर अन्दर काले देखे । <br />
<br />
यह भारत माँ के कलंक हैं<br />
इनसे बचकर रहना मित्रो !<br />
<br />
पढ़ लिखकर नौकरी पा गये ।<br />
भ्रष्ट हुए योजना खा गये पद पाकर धनवान हो गये ।<br />
सत्ता मिली महान हो गये ।<br />
माता पिता सभी को भूले अहंकार मे रहते फूले धर्म कर्म ईमान बेचकर<br />
हिला रहे जनता की चूलें<br />
<br />
यह भारत माँ के कलंक हैं ।<br />
इनसे बचकर रहना मित्रों !<br />
<br />
सदनों मे हैं चोर उचक्के देखो ! घूसखोर हैं पक्के<br />
जिन्हे देख सब हक्के बक्के <br />
भले आदमी खाएँ धक्के ।<br />
सांसद और विधायक निधि ने<br />
जाम किए शासन के चक्के ।<br />
घोर कमीशनबाजी देखो <br />
अनाचार के चौए छक्के । <br />
<br />
यह भारत माँ के कलंक हैं <br />
इनसे बचकर रहना मित्रों ।<br />
<br />
( क्रमश: )अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com30tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-41699264336813684412010-12-17T05:11:00.001-08:002010-12-17T05:11:50.917-08:00व्यंग्य मे बड़ी दम है । साहित्य की माँग कम है ।ब्लाँग लिखना अच्छा लगता है और उससे भी अधिक अच्छा लगता है अधिक से अधिक ब्लाँग पढ़ना । कितने मनीषी और सुधी रचनाकारोँ के रचना संसार से साक्षात्कार का सौभाग्य मिलता है ।<br />
मजेदार तो यह है कि स्वयंभू भी मिले और भूलोक के सहज भी मिले । हमने व्यंग्य के स्थान पर भक्ति एवं श्रृंगार को ब्लाँगोन्मुख किया लेकिन उसकी माँग कम दिखी । <br />
व्यंग्य के पाठक भी अधिक हैं और टिपकर्त्ता भी लेकिन गालियाँ भी आशातीत मिलती हैं ; शब्दकोश की परिधि से परे । <br />
<br />
व्यस्त हैं <br />
======<br />
<br />
देश<br />
जनता<br />
जनतन्त्र<br />
इतिहास<br />
भूगोल<br />
पौरुष<br />
पराक्रम<br />
महापुरुष<br />
प्रेरणाएँ<br />
अस्त हैं ।<br />
मानस<br />
कलावन्त<br />
वैज्ञानिक<br />
सौन्दर्य<br />
रचनाधर्मिता<br />
साहित्य<br />
संस्कृति<br />
संगीत<br />
सृजन<br />
संत्रस्त हैं ।<br />
सच्चरित्र पस्त हैं ।<br />
दुश्चरित्र जबर्दस्त हैं ।<br />
बुद्धिजीवी व्यस्त हैं ।<br />
राजनेता अभ्यस्त हैं<br />
इधर से उधर ।<br />
वाह रे ! अधर ! !<br />
अधर पर अधर ?अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com34tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-42282446692722321642010-10-24T04:07:00.001-07:002010-10-24T04:07:50.559-07:00चित्तौड़ मे आयोजित मीरा महोत्सव पर एक छन्द । मीराविष दो या मुझे <br />
<br />
अमरत्व ही दो<br />
<br />
पति मान चुकी<br />
<br />
घनश्याम को हूँ ।<br />
<br />
इन बन्धनोँ मेँ<br />
<br />
बँधना है नहीँ<br />
<br />
सब त्याग चुकी<br />
<br />
धन धाम को हूँ ।<br />
<br />
अपना लिया है<br />
<br />
अपने प्रिय को<br />
<br />
मन दे चुकी<br />
<br />
लोक ललाम को हूँ ।<br />
<br />
मन मीरा बना<br />
<br />
विष पीना पड़ा<br />
<br />
अनुमान चुकी<br />
<br />
परिणाम को हूँ ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-50144085940785558742010-10-09T21:34:00.001-07:002010-10-09T21:34:40.195-07:00माँ की असीम शक्ति एक छन्दअवगाहन मे उस<br />
<br />
अमृत तत्त्व के<br />
<br />
कौन कहे <br />
<br />
अपरूप मे खोया ।<br />
<br />
रश्मियाँ दिव्य<br />
<br />
विकीर्ण हुई<br />
<br />
तो लगा अनमोल<br />
<br />
स्वरूप मे खोया ।<br />
<br />
साध लिया जब<br />
<br />
शाश्वत शक्ति ने<br />
<br />
मानस बोध <br />
<br />
अरूप मे खोया ।<br />
<br />
धार मिली रसधार<br />
<br />
अनन्त मेँ<br />
<br />
अन्तर रूप<br />
<br />
अनूप मेँ खोया ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-24962766836960838442010-09-18T23:07:00.001-07:002010-09-18T23:07:44.053-07:00एक छन्द : त्यागने वाले मिले ।रस रंग की बात<br />
<br />
करो न अली ! <br />
<br />
बस रूप को<br />
<br />
माँगने वाले मिले ।<br />
<br />
सुख जानने वाले<br />
<br />
अनेक मिले .<br />
<br />
दुख देखकर<br />
<br />
भागने वाले मिले ।<br />
<br />
सुमनोँ को मिला<br />
<br />
जहाँ गन्ध पराग<br />
<br />
वहाँ कण्टक<br />
<br />
मतवाले मिले ।<br />
<br />
कितनी बड़ी त्रासदी<br />
<br />
है जग मेँ<br />
<br />
अपनाकर<br />
<br />
त्यागने वाले मिले ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com46tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-14128806279756065822010-09-11T22:56:00.001-07:002010-09-11T22:56:08.667-07:00एक छंद : विसंगतिजिसको यहाँ कंचन <br />
<br />
रूप मिला<br />
<br />
उसको प्रिय गेह<br />
<br />
मिला ही नही ।<br />
<br />
सुमनो को मिला<br />
<br />
रस गंध पराग .<br />
<br />
परन्तु सनेह<br />
<br />
मिला ही नही ।<br />
<br />
भ्रमरो ने किया<br />
<br />
रसपान सुचारु<br />
<br />
कभी अधरोँ को<br />
<br />
सिला ही नही ।<br />
<br />
प्रिय कैसी विसंगति<br />
<br />
है जग की<br />
<br />
बिना शूल के<br />
<br />
फूल खिला ही नहीँ ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com40tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-41259906793655949762010-09-02T19:45:00.001-07:002010-09-02T19:45:21.257-07:00घनश्याम ; एक छंदछंद में भगवान कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति है । अप्रैल 1998 । <br />
<br />
घनश्याम के अंक<br />
<br />
लगी लगी मैं<br />
<br />
कर पल्लव बेनु<br />
<br />
बनी हुई हूँ ।<br />
<br />
चिर साधिका हूँ<br />
<br />
मनमोहन की<br />
<br />
रति रंग की धेनु<br />
<br />
बनी हुई हूँ ।<br />
<br />
सखि ! नेह की डोर से<br />
<br />
हूँ बँधी मैं <br />
<br />
मनमोहन रूप<br />
<br />
सनी हुई हूँ ।<br />
<br />
स्वर , रश्मियों में <br />
<br />
उन्मत्त हूँ मैं<br />
<br />
पद पंकज रेनु<br />
<br />
बनी हुई हूँ ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com35tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-30304098063722319042010-08-14T11:27:00.001-07:002010-08-14T11:27:02.812-07:00ओ मेरे देशओ मेरे देश के सूत्रधार !<br />
<br />
तुम लाल किले की<br />
<br />
प्राचीर पर खड़े होकर<br />
<br />
कब तक छोड़ते रहोगे<br />
<br />
मूत्रधार ।<br />
<br />
जिसमे अवगाहन करके<br />
<br />
आम जनता<br />
<br />
स्वतन्त्रता की वर्षगाँठ<br />
<br />
मना रही है <br />
<br />
और राजनीति<br />
<br />
अफसरशाही के साथ<br />
<br />
भ्रष्टाचार और<br />
<br />
चरित्रहीनता का<br />
<br />
च्यवनप्राश खा रही है ।<br />
<br />
ऐसे मे कहना पड़ता है<br />
<br />
कि<br />
<br />
अपने देश मे<br />
<br />
दो जंघाओं के बीच का<br />
<br />
भूगोल<br />
<br />
अर्थशास्त्र की बदौलत<br />
<br />
इतिहास बनता है ।<br />
<br />
यह भारतीय जनता है ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com39tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-39229935176878360902010-08-08T20:16:00.001-07:002010-08-08T20:16:27.062-07:00विभूति नारायण राय का अवसरवादमहात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति भाई विभूति नारायण राय ने महिला साहित्यकारों को छिनाल कह दिया ।<br />
<br />
इस मुद्दे पर महिलाओं को ही नहीं अपितु प्रत्येक विवेकशील का उत्तेजित होना स्वाभाविक है ।<br />
<br />
कथित प्रगतिशील साहित्यकार कब दुर्गतिशील आचरण करने लगेंगे . जान पाना मुश्किल है । अज्ञेय . धर्मवीर भारती . अमृता प्रीतम . इस्मत चुगताई सहित अनेक साहित्यकार की जीवन कथा इसी व्यथा का संदेश है ।<br />
<br />
राय ने किन महिला साहित्यकारों को लक्ष्य करके यह कहा . उनका मानस ही जानता होगा । उनका यह कहना कि आजकल महिलाओं मे एक दूसरे से आगे बढ़कर अपने को छिनाल सिद्ध करने की होड़ लगी है ।<br />
<br />
हम यह नही समझ पा रहे हैं कि राय ने यह क्यों नही कहा कि पुरुष साहित्यकार एक दूसरे से बढ़कर महिलाओं को साहित्य मे स्थापित करने हेतु समर्पित हैं ।<br />
<br />
कपिल सिब्बल एवं साहित्यकारों के घोर विरोध के चलते फिलहाल कुलपति की कुर्सी जाती देख राय ने माफी माँग ली ।<br />
यही अवसरवाद है ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-65166930461716195892010-07-21T02:38:00.001-07:002010-07-21T06:28:23.454-07:00छींक<br />
<br />
एक छींक हमारी है<br />
<br />
जो हवा में<br />
<br />
खप जाती है ।<br />
<br />
एक छींक <br />
<br />
सोनिया जी की है<br />
<br />
जो अखबारों में<br />
<br />
छप जाती है ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com52tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-81868945922650822062010-07-04T10:41:00.001-07:002010-07-04T10:41:02.587-07:00कानून ; मकड़ी का जालाअपने देश मे कानून<br />
<br />
मकड़ी का जाला है<br />
<br />
जिसमे मक्खी फँस <br />
<br />
जाती है<br />
<br />
मच्छर फँस जाता है<br />
<br />
झींगुर झन्नाता है ।<br />
<br />
हाथी और घोड़ा<br />
<br />
चीरता चला जाता है ।<br />
<br />
हअरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com37tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-89722424903850287132010-06-22T10:40:00.001-07:002010-06-22T10:40:34.250-07:00शार्टकट : दानवता सत्तासीनओ मेरे मन !<br />
<br />
कोई शार्टकट मारो ।<br />
<br />
किसी महापुरुष की<br />
<br />
आरती उतारो ।<br />
<br />
कोई ऐसा स्विच दबाओ<br />
<br />
धरती को ठोकर मारकर<br />
<br />
आसमान चढ जाओ । <br />
<br />
उल्लुओं को सूर्य<br />
<br />
जाने कब से लग रहा है<br />
<br />
दृष्टिहीन ।<br />
<br />
आदमी की शक्ल में<br />
<br />
मशीन ।<br />
<br />
औपचारिकता<br />
<br />
घर घर आसीन ।<br />
<br />
कृत्रिमता पदासीन ।<br />
<br />
मानवता उदासीन ।<br />
<br />
दानवता सत्तासीन ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com40tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-58566503281564716942010-06-11T22:32:00.001-07:002010-06-11T22:32:35.659-07:00हम तो हैँ कफनचोर राजा ! जनता से कह दो - प्रणाम करें ।गैस काण्ड होते हैं<br />
<br />
होने दो ।<br />
<br />
पीड़ित जन रोते हैं<br />
<br />
रोने दो ।<br />
<br />
मरने दो . त्राहि त्राहि<br />
<br />
करने दो ।<br />
<br />
हमको निर्द्वन्द राज्य<br />
<br />
करने दो ।<br />
<br />
अर्जुन हम अपने को<br />
कहते<br />
लेकिन दुर्योधन का<br />
काम करें ।<br />
हम तो हैं कफनचोर<br />
राजा !<br />
जनता से कह दो<br />
प्रणाम करें ।<br />
<br />
इण्डरसन के ही हम<br />
<br />
सन हैं ।<br />
<br />
अपने गुलाम अभी<br />
<br />
मन हैं ।<br />
<br />
जनता से अपना क्या<br />
<br />
रिश्ता ?<br />
<br />
अमेरिका अपना <br />
<br />
फरिश्ता ?<br />
<br />
आओ ! हत्यारों के<br />
साथ रहें .<br />
जनता के कष्ट बनें .<br />
नाम करें ।<br />
हम तो हैं कफनचोर राजा !<br />
जनता से कह दो<br />
प्रणाम करें ।<br />
<br />
हम तो जयचन्द<br />
<br />
आदिकाल के ।<br />
<br />
सबके मुँह बन्द .<br />
<br />
हमे पाल के ।<br />
<br />
मगरमच्छ नदियों के .<br />
<br />
ताल के ।<br />
<br />
हम ही पर्याय यहाँ<br />
<br />
काल के ।<br />
<br />
जनता मर जाय .<br />
देश मिट जाए <br />
फिर भी हम जेबों मेँ<br />
दाम भरेँ ।<br />
हम तो हैं कफनचोर<br />
राजा !<br />
जनता से कह दो <br />
प्रणाम करें ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com41tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-45362380120884147632010-06-05T06:28:00.001-07:002010-06-05T06:28:34.613-07:00......ओह ! फिर भी इतनी भीड़ लोकतन्त्र की दुकान पर ?मन्त्री<br />
<br />
अधिकारी<br />
<br />
माफिया<br />
<br />
अपराधी<br />
<br />
भ्रष्टाचारी<br />
<br />
मँहगाई<br />
<br />
आसमान पर ।<br />
<br />
संविधान<br />
<br />
नियम - कानून<br />
<br />
नैतिकता<br />
<br />
ईमानदारी<br />
<br />
चरित्र<br />
<br />
सद्भावना<br />
<br />
श्मशान पर ।<br />
<br />
होटलों मेँ रंगीनियाँ<br />
<br />
सन्नाटा मकान पर ।<br />
<br />
हम सब की उँगलियाँ<br />
<br />
आँख और कान पर ।<br />
<br />
फिर भी <br />
<br />
इतनी भीड़<br />
<br />
लोकतन्त्र की <br />
<br />
दुकान पर ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com41tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-82711361277174957342010-05-29T17:17:00.001-07:002010-05-29T17:17:58.028-07:00आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस परअखरे जो बार बार<br />
<br />
उसे अखबार<br />
<br />
कहते हैं ।<br />
<br />
सरके जो बार बार<br />
<br />
उसे सरकार<br />
<br />
कहते हैं ।<br />
<br />
समाचारों को बेचकर<br />
<br />
खरीद ले जो कार<br />
<br />
उसे पत्रकार<br />
<br />
कहते हैं ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com37tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-71919378058029778842010-05-25T22:47:00.001-07:002010-05-25T22:47:31.854-07:00युवा शक्तियुवा शक्ति<br />
<br />
एक जल वर्षण<br />
<br />
युग का आकर्षण<br />
<br />
सीपी मे गिरे तो<br />
<br />
मोती हो जाती है <br />
<br />
अन्यथा समुद्र मे जाकर<br />
<br />
खारी हो जाती है ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-4995807214457493352010-05-18T10:58:00.001-07:002010-05-18T10:58:43.750-07:00जनता आम सड़क है ।अपने देश मे<br />
जनता : आम सड़क है ।<br />
जनतंत्र : एक ट्रक है<br />
जिस पर<br />
पब्लिक कैरियर लिखा है<br />
लेकिन पूँजीपतियों का<br />
सामान भरा है ।<br />
<br />
ब्रेक : चुनाव<br />
एक्सीलेटर : उपचुनाव<br />
चुँगी : मध्यावधि चुनाव<br />
पंक्चर : इमर्जेन्सी<br />
और हार्न<br />
देश की प्रगति को<br />
बताता है ।<br />
सावधान !<br />
घायल मत हो जाना<br />
जनतंत्र का ट्रक<br />
आता है ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-2982320442766381192010-05-12T22:10:00.001-07:002010-05-12T22:10:48.679-07:00वेश्या और नेतावेश्यालय के <br />
मकान नम्बर सात पर<br />
लिखा था -<br />
नेताओँ का प्रवेश<br />
वर्जित ।<br />
क्योंकि उनका धन<br />
हमसे भी अधिक<br />
गलत तरीके से<br />
अर्जित ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com30tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-1989033654791118912010-05-06T06:49:00.001-07:002010-05-06T06:49:29.434-07:00कसाव को फाँसी ; एक संवाद( आतंकवाद का वर्चस्व है , आन्तरिक या वाह्य - खुलेआम ग्राह्य ) <br />
<br />
कसाव को फाँसी के<br />
निर्णय के बाद<br />
मुझे याद आ गयी<br />
अफजल को फाँसी से<br />
छोड़े जाने की फरियाद<br />
जिस पर आज तक निर्णय न हुआ ।<br />
सियारों की मीटिंग मे<br />
क्या हुआ -<br />
हुआ हुआ हुआ<br />
हुक्की हुआ ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com32tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-18604192380825677112010-04-30T21:01:00.001-07:002010-04-30T21:01:02.690-07:00जंगलीकरणजंगलों को काटकर<br />
बसाए जा रहे हैं गाँव<br />
गाँवों का किया जा रहा है <br />
नगरीकरण<br />
नगरों का सौन्दर्यीकरण<br />
और अब स्थिति<br />
यहा तक आ गयी है<br />
कि सौन्दर्य का<br />
होता जा रहा है<br />
जंगलीकरण ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-54707310773871057032010-04-23T00:39:00.001-07:002010-04-23T00:39:48.094-07:00गिद्धहम एक इंसान हैं<br />
इसलिए परेशान हैं<br />
चूँकि आप गिद्ध हैं<br />
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।<br />
<br />
<br />
वन्देमातरम्<br />
<br />
<br />
अपने यहाँ<br />
पंचायती व्यवस्था : ठर्रा<br />
विधान सभाएँ : ह्विस्की और संसद : रम है ।<br />
यही अपने देश का<br />
वन्देमातरम् है ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-68968969764735767912010-04-11T21:47:00.001-07:002010-04-11T21:47:14.722-07:00डाँ0 अम्बेदकर जयन्ती पर ( 14 अप्रैल ) आप की ही तरह न जाने कितने हैं वैकल्पिक पत्नियों पर कायम ।ओ मेरे आराध्य<br />
डाँ0 अम्बेदकर !<br />
आप द्वारा दलितों के<br />
हितों के लिए<br />
किया गया संघर्ष<br />
जिसका उत्कर्ष<br />
हमारे सामने है ।<br />
आपको महापुरुष बनाया<br />
आपके काम ने है ।<br />
<br />
आप दलितों के अधिकारों<br />
के लिए लड़ते रहे<br />
पुस्तकें लिखते रहे<br />
पढते रहे<br />
संविधान के अध्याय<br />
गढते रहे ।<br />
<br />
न्याय दिलाने के लिए<br />
आप ने सब कुछ किया<br />
बराबरी का अमृत दिया <br />
इसलिए देश आपको<br />
प्रणाम करता है ।<br />
सारा विकास<br />
आपके नाम करता है ।<br />
<br />
दलित पुरुष हो या नारी<br />
आपसे देखी नही गयी<br />
लाचारी ।<br />
आपने समानता दिलाने<br />
के लिए बनाए कानून <br />
और स्वयं<br />
तीन तीन पत्नियों के साथ<br />
मनाते रहे हनीमून ।<br />
पूरे देश मे <br />
आपकी जय है ।<br />
गाँधी जी की जय तो<br />
एक अभिनय है ?<br />
<br />
ओ मेरे आराध्य !<br />
हम आज तक यह नही<br />
जान पाए कि जिसका <br />
एक तना और<br />
उठा हुआ हाथ<br />
कर रहा हो आम जनता का<br />
आह्वान<br />
बताता हो निदान<br />
और दूसरे हाथ मे शोभायमान संविधान <br />
वह तीन तीन नारियोँ के साथ करता रहा<br />
कानून का सम्मान<br />
अपमान <br />
अनुसंधान या<br />
गर्भाधान ?<br />
<br />
आपके न जाने<br />
कितने समर्थक ।<br />
नारियों को कभी नही<br />
समझते हैं निरर्थक ।<br />
आपकी ही तरह<br />
न जाने कितने नेता<br />
अभिनेता<br />
अधिकारी<br />
आज तक हैं<br />
वैकल्पिक पत्नियों पर कायम ।<br />
क्या इसका उत्तर दे पाएँगे<br />
जार्ज<br />
थरूर<br />
पासवान <br />
मुलायम ?<br />
<br />
ऐसे मे कहना पड़ता है कि<br />
सुख<br />
समृद्धि<br />
और विकास के क्षेत्र मे<br />
देश इतना हो गया है दक्ष । कि चौदह वर्षीया का वक्ष<br />
पच्चीस वर्षीया के समकक्ष ।<br />
जिसे देखकर <br />
आश्चर्यचकित है<br />
कालिदास का यक्ष ।<br />
<br />
इस समय वीवीआईपी<br />
क्षेत्र मे<br />
वैकल्पिक पत्नियों का चलन है ।<br />
वास्तविक पत्नी मे <br />
सीलन है<br />
गलन है<br />
जलन है ।<br />
<br />
इन सब लोगों का<br />
नारियों के भौगोलिक वातावरण पर जारी है शोध <br />
फिर भी महिला आरक्षण का विरोध ?<br />
जल मे रहकर मगर से बैर तैर सके तो तैर ।<br />
<br />
ओ मेरे आराध्य<br />
अम्बेदकर !<br />
आप अपने को देखिए<br />
और देखिए दलितों के मसीहा मान्यवर काशीराम को<br />
जो मान्यवर होते हुए भी <br />
आजन्म कुँआरे रहे<br />
ऊँची नौकरी छोड़ी<br />
दलितों के बीच खड़ा कर दिया मजबूत संगठन<br />
दिलवायी सत्ता ।<br />
समानता<br />
न्याय<br />
अधिकार के लिए लड़ते रहे लगातार ।<br />
उनके मन मे कभी नही आया<br />
आपकी तरह तीन तीन<br />
पत्नियों का विचार ।<br />
इसलिए आने वाला समय<br />
काशीराम के गुण गाएगा । इतिहास कथनी और करनी की समरूपता को <br />
सिर झुकाएगा ।<br />
<br />
<br />
नामअरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com40tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-76750675577695942962010-04-01T10:38:00.001-07:002010-04-01T10:38:44.543-07:00हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं । ( इस रचना का दृश्य प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध है )महाबली हम , बाहुबली हम ।<br />
आतंकी हम . महाछली हम ।<br />
रौंद रहे हैँ कली कली हम ।<br />
लोकतंत्र की परखनली हम ।<br />
<br />
न्याय और अन्याय हमीं से ।<br />
संकट और उपाय हमीं से ।<br />
सभी लोग निरुपाय हमीं से ।<br />
जनमानस असहाय हमी से ।<br />
<br />
सत्यवादियों को देखा तो <br />
लगा सभी सिरफिरे हुए हैं ।<br />
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।<br />
<br />
झूठे सब आश्वासन बाँटे ।<br />
बिखराए राहो में काँटे ।<br />
ताल तलैया झाबर पाटे ।<br />
नैतिकता को मारे चाँटे ।<br />
<br />
हिंसा , दुराचार के भ्राता । अपराधों से सीधा नाता ।<br />
जातिवाद के आश्रयदाता । काला पैसा नकली खाता । <br />
<br />
मेरे रुतबे के आगे तो<br />
सब रुतबे किरकिरे हुए हैं । हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।<br />
<br />
शासन और प्रशासन अपना ।<br />
दल अपना सिंहासन अपना ।<br />
धौंस धाँय दुःशासन अपना ।<br />
भाषण अपना राशन अपना ।<br />
<br />
नदी - नहर , धन - धरती अपनी ।<br />
बंजर अपनी , परती अपनी । <br />
जो भी है सब अपना अपना ।<br />
सफल हुआ जीवन का सपना ।<br />
<br />
गिरे हुए जो लोग यहाँ हैं । इधर उधर या जहाँ तहाँ हैँ ।<br />
मत खोजो वे कहाँ कहाँ हैं । जगह जगह हैँ <br />
यहाँ वहाँ हैँ ।<br />
<br />
हम इतना गिर गये साथियो !<br />
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?<br />
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-46718523803981613482010-03-28T17:28:00.001-07:002010-03-28T17:28:10.460-07:00हम तो इतना गिरे हुए हैं ( सामयिक परिदृश्य को व्यक्त करतो हुई रचना )शब्दजाल के चतुर खिलाड़ी ।<br />
लोकतन्त्र की दशा बिगाड़ी । <br />
स्वार्थ सिद्धि मे<br />
सदा जुगाड़ी ।<br />
इनके आगे सभी अनाड़ी ।<br />
<br />
कुर्सी ही सिद्धान्त हमारा ।<br />
यही धर्म वेदान्त हमारा ।<br />
अवसर देखा बदला नारा ।<br />
खोज रहे नित नया सहारा ।<br />
<br />
तरह तरह के राग अलापे ।<br />
सारे सुर बेसुरे हुए हैं ।<br />
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओँ से घिरे हुए हैं ।<br />
<br />
हमने गिर कर क्या क्या पाया ।<br />
सच बिसराया<br />
छल अपनाया ।<br />
षडयन्त्रों को गले लगाया ।<br />
भ्रष्टों के ही तेल लगाया ।<br />
<br />
नियम और कानून तोड़कर ।<br />
संविधान का स्वर<br />
मरोड़कर ।<br />
मानवता का शीष फोड़कर ।<br />
जनमानस के हाथ<br />
जोड़कर ।<br />
<br />
ऊँचे पद की शपथ<br />
ग्रहण कर ।<br />
लोकतन्त्र के सिरे<br />
हुए हैं ।<br />
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओँ से घिरे हुए हैं ।<br />
<br />
बिन पैसा हम काम न करते ।<br />
सुबह न करते<br />
शाम न करते ।<br />
ऐश बिना आराम न करते ।<br />
बिना सुन्दरी जाम न भरते ।<br />
<br />
पैसा मिले<br />
विचार न कोई ।<br />
हमको दे उधार ले कोई ।<br />
धन के लिए<br />
सभी कुछ हाजिर ।<br />
पद के लिए<br />
सभी कुछ हाजिर ।<br />
बालू से भी तेल निकाला<br />
जन गण मन<br />
सब पिरे हुए हैं ।<br />
हम तो इतना गिरे हुए हैँ । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।<br />
<br />
माँ बहनो का फर्क न जाना ।<br />
देश का बेड़ा गर्क न जाना ।<br />
स्वर्ग न जाना<br />
नर्क न जाना ।<br />
स्वार्थ देखकर तर्क न जाना ।<br />
<br />
हालीवुड वालीवुड अपना ।<br />
लगा फिल्म मे पैसा अपना ।<br />
हीरो हीरोइन का सपना । सबको नाम हमारा जपना ।<br />
<br />
हमे देख कर खजुराहो के<br />
भित्ति चित्र बे सिरे<br />
हुए हैँ ।<br />
हम तो इतना गिरे हुए हैँ ।<br />
गिरे हुओँ से घिरे हुए हैँ ।अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7341832842930160262.post-71435208287633453362010-03-22T02:14:00.001-07:002010-03-24T08:50:05.227-07:00अमर सिंह ने सोनिया और राहुल गाँधी की प्रशंसा की । इन्हे रास्ता चाहिए । दिगम्बर चाय को नाश्ता चाहिए ।<div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><br />
<br />
<i><b><span style="font-size: large;">खण्डहर ने कहा</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">हम महलोँ के गुलाम है</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">एक महल से बाहर खदेड़े गये हैं</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">इस समय गुमनाम हैं ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">हमारे पीछे की भीड़</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">छट चुकी है ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">सत्ता की प्रेमिका भी</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">दूसरोँ से पट चुकी है ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">कैसे हो सकेगी</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">राज्य सभा मे वापसी ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">चरम सीमा पर है</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">दुश्मनी आपसी ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;"><br />
</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">अब हम राहुल सोनिया के</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">गीत गाएंगे ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">आवश्यकता पड़ी तो</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">कण्डे पर भी मक्खन</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">लगाएंगे ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">सोनिया जी इनका भला करे</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">ताकि गुमशुदा लोगोँ </span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">की भी दुकान चला करे ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;"><br />
</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;"><br />
</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;"><br />
</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">भाई साहब ! इसी तरह</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">हाथ पैर मारिए ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">कहीँ न कहीँ तो सुधि</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">ली जाएगी</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">प्रशंसा के वचन उचारिए ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">कुर्सी बहुत कुछ करवाती है ।</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">आप कहते</span></b></i></div><div style="color: #eeeeee; text-align: left;"><i><b><span style="font-size: large;">यह ठकुरसोहाती है ।</span></b></i></div>अरुणेश मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.com4