महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति भाई विभूति नारायण राय ने महिला साहित्यकारों को छिनाल कह दिया ।
इस मुद्दे पर महिलाओं को ही नहीं अपितु प्रत्येक विवेकशील का उत्तेजित होना स्वाभाविक है ।
कथित प्रगतिशील साहित्यकार कब दुर्गतिशील आचरण करने लगेंगे . जान पाना मुश्किल है । अज्ञेय . धर्मवीर भारती . अमृता प्रीतम . इस्मत चुगताई सहित अनेक साहित्यकार की जीवन कथा इसी व्यथा का संदेश है ।
राय ने किन महिला साहित्यकारों को लक्ष्य करके यह कहा . उनका मानस ही जानता होगा । उनका यह कहना कि आजकल महिलाओं मे एक दूसरे से आगे बढ़कर अपने को छिनाल सिद्ध करने की होड़ लगी है ।
हम यह नही समझ पा रहे हैं कि राय ने यह क्यों नही कहा कि पुरुष साहित्यकार एक दूसरे से बढ़कर महिलाओं को साहित्य मे स्थापित करने हेतु समर्पित हैं ।
कपिल सिब्बल एवं साहित्यकारों के घोर विरोध के चलते फिलहाल कुलपति की कुर्सी जाती देख राय ने माफी माँग ली ।
यही अवसरवाद है ।
रविवार, 8 अगस्त 2010
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17 टिप्पणियां:
मस्तिष्क में
है पंक भरा,
और
प्रज्ञता का दम भरते है!
इनको
साहित्यकार कह के,
हम
साहित्य का अपमान क्यों करते है ?
सच कहा, यह अवसरवाद ही है।
पुरुष साहित्यकार एक दूसरे से बढ़कर महिलाओं को साहित्य मे स्थापित करने हेतु समर्पित हैं ।
यानि कि महिलायें स्वयं साहित्यकार नहीं बन सकतीं ..बिना पुरुष की मदद के ? क्या हर जगह पुरुषों का ही वर्चस्व है ?
अवसरवाद तो समझ आया ...लेकिन यह बात समझ से परे है ...
आदरणीया बहन संगीता जी . सादर अभिवादन ।
मेरे कथन को आपने अन्यथा लिया । कुछ कथित साहित्यकारों ने महिलाओं को साहित्य या मंच पर स्थापित करने का ठेका ले रखा है । यह लोग महिलाओँ का बहुआयामी शोषण करते हैं । भरमाते हैं . सब्जबाग दिखाते हैं ।
जो महिलाएँ प्रखर एवं मेधावान हैं . उन्हे किसके शब्दजाल मे फँसने की आवश्यकता ?
yeh dukhad hai. achhe saahityakar se aisi asha nahi ki jaati.
aapke vichar se sahmat hun.
बिल्कुल सही कहा है आपने! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! उम्दा प्रस्तुती!
Sir ji....AAp lumbe samay tak kuchh post hi nahin karte. zara jaldi-jaldi post dala kijiye.
Aapke विभूति नारायण राय ke vishay men aapke vichaar se main puri tarah sahmat hun.
विभूति नारायण राय ji ki 'Chhinaal' vaali tippadi ghore nindaniye hai.
AAsha hai ki aage koi bhadrajan aisi baat nahin karegaa.
नया ज्ञानोदय की इस अंक को भारतीय ज्ञानपीठ ने बाजार से वापस ले लिया है । भाई रवीन्द्र कालिया ने इस विवाद के लिए क्षमा माँगी ।
साहित्यकारों निरंकुश न बनो ।
आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार
its realy wonder full
sachi bat kahi hai ham aap ko dil se prnam karte hai
bahut sundar....
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..
Banned Area News : Congress cautions workers to retire from fray
ray ki rai theek nahi.....
आज तक यह सुना था की हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है. यहाँ तो लोग स्त्री को केन्द्र बिंदु बना कर पुब्लिसिटी पाना चाहते हैं....कितना ऊपर उठ चुके हैं लोग.
striyon ko chhinaal kahne walon
par aapne pratikriya kee,
ab unhen chhinal karne walon
par kuchh kahe.
striyon ko chhinaal kahne walon
par aapne pratikriya kee,
ab unhen chhinal karne walon
par kuchh kahe.
आज का युग अवसरवादिता का ही है ...
राय जी तो कह के चले गए लेकिन हमने उसे इतना मथ दिया है कि अब घिन आ रही है... आपने सही कहा कि पुरुष साहित्यकार ही महिलाओं को स्थापित करने की होड़ में लगे है.. अब राय जी से कहा जाय कि ऐसे साहित्यकारों को क्या कहेंगे वे... अवसरवादिता ही है कि उन्होंने माफ़ी मांग ली... ए़क संक्षिप्त किन्तु बेबाक आलेख के लिए आपका धन्यबाद
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