ओ मेरे आराध्य
डाँ0 अम्बेदकर !
आप द्वारा दलितों के
हितों के लिए
किया गया संघर्ष
जिसका उत्कर्ष
हमारे सामने है ।
आपको महापुरुष बनाया
आपके काम ने है ।
आप दलितों के अधिकारों
के लिए लड़ते रहे
पुस्तकें लिखते रहे
पढते रहे
संविधान के अध्याय
गढते रहे ।
न्याय दिलाने के लिए
आप ने सब कुछ किया
बराबरी का अमृत दिया
इसलिए देश आपको
प्रणाम करता है ।
सारा विकास
आपके नाम करता है ।
दलित पुरुष हो या नारी
आपसे देखी नही गयी
लाचारी ।
आपने समानता दिलाने
के लिए बनाए कानून
और स्वयं
तीन तीन पत्नियों के साथ
मनाते रहे हनीमून ।
पूरे देश मे
आपकी जय है ।
गाँधी जी की जय तो
एक अभिनय है ?
ओ मेरे आराध्य !
हम आज तक यह नही
जान पाए कि जिसका
एक तना और
उठा हुआ हाथ
कर रहा हो आम जनता का
आह्वान
बताता हो निदान
और दूसरे हाथ मे शोभायमान संविधान
वह तीन तीन नारियोँ के साथ करता रहा
कानून का सम्मान
अपमान
अनुसंधान या
गर्भाधान ?
आपके न जाने
कितने समर्थक ।
नारियों को कभी नही
समझते हैं निरर्थक ।
आपकी ही तरह
न जाने कितने नेता
अभिनेता
अधिकारी
आज तक हैं
वैकल्पिक पत्नियों पर कायम ।
क्या इसका उत्तर दे पाएँगे
जार्ज
थरूर
पासवान
मुलायम ?
ऐसे मे कहना पड़ता है कि
सुख
समृद्धि
और विकास के क्षेत्र मे
देश इतना हो गया है दक्ष । कि चौदह वर्षीया का वक्ष
पच्चीस वर्षीया के समकक्ष ।
जिसे देखकर
आश्चर्यचकित है
कालिदास का यक्ष ।
इस समय वीवीआईपी
क्षेत्र मे
वैकल्पिक पत्नियों का चलन है ।
वास्तविक पत्नी मे
सीलन है
गलन है
जलन है ।
इन सब लोगों का
नारियों के भौगोलिक वातावरण पर जारी है शोध
फिर भी महिला आरक्षण का विरोध ?
जल मे रहकर मगर से बैर तैर सके तो तैर ।
ओ मेरे आराध्य
अम्बेदकर !
आप अपने को देखिए
और देखिए दलितों के मसीहा मान्यवर काशीराम को
जो मान्यवर होते हुए भी
आजन्म कुँआरे रहे
ऊँची नौकरी छोड़ी
दलितों के बीच खड़ा कर दिया मजबूत संगठन
दिलवायी सत्ता ।
समानता
न्याय
अधिकार के लिए लड़ते रहे लगातार ।
उनके मन मे कभी नही आया
आपकी तरह तीन तीन
पत्नियों का विचार ।
इसलिए आने वाला समय
काशीराम के गुण गाएगा । इतिहास कथनी और करनी की समरूपता को
सिर झुकाएगा ।
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40 टिप्पणियां:
Vah-Vah bhut khoob
इतना सच किसकी कविता मे मिलेगा ?
wow !!!!!!!!!!!!
bahut sundar
maza aa gaya pad kar
http://kavyawani.blogspot.com/
Shekhar kumawat
wow !!!!!!!!!!!!
bahut sundar
pad kar acha laga
http://kavyawani.blogspot.com/
Shekhar kumawat
Bahut sundar---kadava sach.
काल के आधार पर
अविलम्ब उतरी है
किटकिटाकर कुण्डली
कल खूब कुतरी है
जहाँ माया वहाँ काशी
वहीँ अम्बेदकर साहब
वहीँ कविता मिली पर
हाय ! कितनी साफसुथरी है
पूरी व्यवस्था की। तीनोँ के लिए एक एक,
अधूरी रहती तो
कारण बनती
असंतुष्टि की व्यथा की।
कविता अच्छी
व्यंग धारदार
बधाई
pehli baar aapka blog padha. aur ye vyangye rachna sach me bahut acchhi aur saargarbhit hai.
shukriya mere blog par aane k liye.
bahoot achha likha hai
बहुत सटीक बात कह दी है इस रचना के माध्यम से...बेहतरीन व्यंग है...कच्चा चिटठा खोल दिया है आपने...बहुत बढ़िया
सभी टिप्पणीकर्त्ता उत्कृष्ट साहित्यकार हैं . मुझ अकिञ्चन को प्रोत्साहन दिया , आभारी हूँ ।
खाने के दांत और, दिखाने के और पर ऐसी बेबाक टिप्पणी अन्यत्र दुर्लभ है ! आभार !मेरी कविता पसंद आई आभारी हूँ !
बेबाक सच लिखा आपने .. सबके वश का नहीं होता है सच लिखना . बहुत बधाई .
बढ़िया लिखा........."
इतना सच कहने का साहस सबके पास नहीं हुआ करता| और राजनीति के छत्ते में हाथ डालना तो ओखली में सर देने केसमान है\ अच्छी रचना आभार|
आदरणीय दादा जी प्रस्तुत कविता वर्तमान परिद्रश्य को बड़े सलीके से
प्रतिबिंबित करती हैइतना सरल कटु शब्दों के माध्यम से अवगत करने के लिए हार्दिक साधुवाद |
हमेशा की तरह अतुलनीय !
अरुणेश जी,
बेबाक सच्चाई है आपकी कविता में..
इतना साहस...इतना कटु सत्य...इतने निर्भीक
शब्द...इतनी कठोरता... इसे लिखने और पढने
दोनों के लिए हिम्मत चाहिए....!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! आपकी लेखनी को सलाम! बधाई!
Bhayankar aur Achook!
एक सशक्त रचना... आपने अपना कवि धर्म निभाया.. बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं!!
मैं आप सबकी बेबाक प्रतिक्रियाओँ से अभिभूत हूँ । धन्यवाद ।
इन सब लोगों का
नारियों के भौगोलिक वातावरण पर जारी है शोध
फिर भी महिला आरक्षण का विरोध ?
जल मे रहकर मगर से बैर तैर सके तो तैर ।
... बहुत खूब !!!
Arunesh ji aapki kavita padh kar achambhit hun kitni aag liye hue hain aap kalam mein ......
ek ek vayang bahut teekha tha.....
bahut achcha laga......
अरुणेश जी, नमस्कार,
बहुत दिनों के बाद कुछ अलग पढने को मिला है, बहुत ही उच्च कोटि का कटाक्ष है आपकी रचना में ,सचमुच अच्छा लगा पढ़कर ! अब तो आपकी सारी रचनाएँ पढनी पड़ेंगी ! dhanyawaad !
mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....
beebaki se aapne katu satya ko udghatit kar chehre ke peeche chhupe chehre ka roop dikhaya hai..
Bahut Badhai
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद ..
आपकी कुछ कवितायेँ पढ़ी , बेहतरीन लगी .
ये कविता एक सुन्दर व्यंग है .
पढकर बहुत अच्छा लगा..
अब पैसो का ही खेल रह गया है .... पैसा पैसा पैसा..गरीब गरीब है. औऱ लाचार है..कोई नहीं सुनता उसकी बात ..गरीब की आवाज उठाने के बहाने गरीब सिपाहियों की ही हत्या होने लगी है औऱ उनकी लाशों पर दोनो पक्ष अट्टहास करता है...
खैर पत्नी तो मेरी एक नहीं सो क्या कहूं इस बारे में
बहुत खूब ....!!
यथार्तता, जोकि लोग जानकर भी मौन रहते है उसे कलम के माध्यम से ख़ूबसूरती से उकेरना सबके बस की बात नहीं
बहुत खूब
A powerful satire!
Thank you for visiting my blog (http://babyaryaa.blogspot.com)!
सोचने को मजबूर कर दिया आपने ! शुभकामनायें
न्याय दिलाने के लिए
आप ने सब कुछ किया
बराबरी का अमृत दिया
इसलिए देश आपको
प्रणाम करता है ।
सारा विकास
आपके नाम करता है ।
bahut khoob ,ambedkar ji ko shat shat naman ,hum aabhari hai aapke jo unke guno se parichya karaya .aham post .
तीखे तेवर ,सीधी बात!
सच से पर्दा हटाती बहुत ही कुशलता से यह कविता गढ़ी गयी है.
'जल मे रहकर मगर से बैर तैर सके तो तैर '
बहुत खूब कहा!
आया तो था आपकी रचनाओं के लिए, उनका आनन्द लिया अत: पहले उनके लिए साधु-साधु!
आपका चित्र देखकर मुझे लगता है कि मैं आप से मिला हूँ, व्यक्तिगत तौर पर। कब-कहाँ? याद नहीं; मगर शायद इलाहाबाद, कानपुर या सीतापुर में।
खैर, व्यंग्य सशक्त हैं और तीखे-मीठे भी।
आप तो डॉ0 जगदीश गुप्त की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं "कवि वही जो अकथनीय कहे" और साफ़ बच कर निकल भी रहे हैं।
शुभकामनाएँ!
आता रहूँगा यहाँ।
aapki is kavita se aapke andar ki sachchai parilachhit hoti hai. kya khoob likha hai aapne. yahi to hai ek kavi ka nshhal man jo ek ek sachchai ko kagaj par utaar deta hai,bina kisi se dare.
poonam
अरुणेश जी
आंबेडकर पर लिखी आपकी रचना पढ़ कर लगा की आप बहुत अच्छी व्यंग्यात्मक रचना लिख सकते हैं. ९०% रचना पठनीय और सामयिक है.परन्तु प्रमाण, नजीर समानता, तुलना करते वक्त समय, परिवेश , परिस्थितियां , मजबूरियाँ भी होती हैं जिनके कारण वह सब करना पड़ता है या हो जाता है जो तात्कालिक समय में यथोचित भी हो सकता है. मेरी दृष्टि में इस तरह की रचना करते समय एक रचना धर्मी का संतुलित या संयमित होना बहुत ज्यादा मायने रखता है. यह मेरे विचार हैं जो किसी पर मैं थोपना नहीं चाहूंगा. वैसे मुझे आज तक किसी विशेष वर्ग , स्तर, जाति या महिला - पुरुष नेता - नेत्री के प्रति श्रद्धा पैदा नही हुई क्योंकि हर नेता पहले छद्म आदर्श का सहारा लेता है और बाद में अपनी औकात दिखाता ही है. ये बात ९९.९ % के साथ लागू होती है.....
हमारे देश में कृष्ण, दशरथ, उत्तानपाद पांडू जैसे सैकड़ों उदाहरण हैं बहुपत्नी प्रथा के .. लेकिन उस समय इतनी मुश्किल या टूल देने वाली बातें नहीं हुआ करती थी.
खैर फिर भी मैं आपकी बात का समर्थन करता हूँ, बस ये कहना चाहूंगा कि कि कहने का तरीका थोड़ा समृद्ध होता तो मुझे बेहद अच्छा लगता .
- विजय तिवारी ' किसलय '
बढिया..
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