शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

गिद्ध

हम एक इंसान हैं
इसलिए परेशान हैं
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।


वन्देमातरम्


अपने यहाँ
पंचायती व्यवस्था : ठर्रा
विधान सभाएँ : ह्विस्की और संसद : रम है ।
यही अपने देश का
वन्देमातरम् है ।

29 टिप्‍पणियां:

Amitraghat ने कहा…

वाह क्या करारा व्यंग है......"

nilesh mathur ने कहा…

हम एक इंसान हैं इसलिए परेसान हैं
आप गिद्ध हैं इसलिए प्रसिद्ध हैं!
सच कहा आपने, यही हाल है, बहुत ही सुन्दर रचना

arvind ने कहा…

हम एक इंसान हैं
इसलिए परेशान हैं
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं......vaah bahut sundar vyangya.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

यह दोनो रचनाएँ 1982 जून की हैँ , जो 1000 से अधिक पत्र - पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं । हमारी मंच की लोकप्रिय रचना ।
आप की प्रतिक्रिया हमे दिशा देगी ।

कडुवासच ने कहा…

...बहुत खूब ... लाजवाब!!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waah......vyangya ka tikha sargarbhit baan

बेनामी ने कहा…

bahut hi behtareen rachna..
yun hi lkihte rahein.....

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

itani si kavita me kitani gahari baat kah dee hai aapne. mujhe aapse prerana milti hai.
poonam

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

यह दोनो रचनाएँ 1982 जून की हैँ , जो 1000 से अधिक पत्र - पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं । हमारी मंच की लोकप्रिय रचना ।
--कविता ही तारीफ योग्य है। जिस समय यह लिखा गया उस समय के लिए करारा व्यंग्य है मगर वर्तमान मे स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि यह अच्छा व्यंग्य हो गया है।
-गिद्ध खत्म हो गए
गिद्धों का स्थान अब नरभक्षियों ने ले लिया है
ठर्रा भी असली नहीं मिलता
मिलती है जहरीली शराब
--व्यंग्यकार क्या करें जमाना तेजी से बदल रहा है जब तक लोग समझते हैं तब तक देर हो चुकी होती है।

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

वाह मज़ा आ गया .क्या खूब कहा आपने बहुत ही सुन्दर !!!

dipayan ने कहा…

वाह, क्या बात कही है आपने । दुख की बात है कि लोग यहाँ गिद्ध बनकर प्रसिद्ध होने मे शर्म महसूस नहीं करते ।

manu shukla ने कहा…

realy good one

manu shukla ने कहा…

realy good one

कविता रावत ने कहा…

Vartmaan ku-vywastha se upji ek anugunj..... ek buland aawaj.....
Anukarniya prayas......

Urmi ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दरता से व्यंग्य किया है आपने! बहुत खूब! बधाई!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अपने यहाँ
पंचायती व्यवस्था : ठर्रा
विधान सभाएँ : ह्विस्की और संसद : रम है ।
यही अपने देश का
वन्देमातरम् है ।

बहुत खूब ....!!
यही कविता हजार से अधिक पत्र पत्रिकाओं में .....??

जबकि हर पत्रिका की मांग होती है की कविता अप्रकाशित हो ....!!

मुझे तो ५० से ज्यादा पत्रिकाओं के नाम भी नहीं पता .....
अरुणेश जी एक सिफ़र ज्यादा तो नहीं लग गया कहीं गलती से ....??

अरुणेश मिश्र ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अरुणेश मिश्र ने कहा…

आदरणीया हरकीरत बहन ! सादर अभिवादन . आप जो भी संख्या समझें . स्वीकार्य है ।
समस्त प्रतिक्रियाएँ मनीषियों की हैँ , विनम्र भाव एवं आभार ।

Dimple Maheshwari ने कहा…

जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर...इंतजार ...बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भले ही ये रचनाएँ १९८२ की हों....पर अभी भी कत्क्ष करने में पूर्णतया: सक्षम हैं...बहुत बढ़िया व्यंग

Rohit Singh ने कहा…

वाह क्या चित्रण किया है..सोच रहा हूं कि मैं भी आदत डाल लूं ताकि संसद या विधानसभा तक आसानी से पहुंचा जा सके।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

व्यंग की इतनी तीखी धार घायल करती है अंदर तक ... आज भी उतना ही प्रासंगिक जितना १९८२ में था ...

अरुण मिश्र ने कहा…

एक सार्वकालिक व्यंग
रचना, मार्मिक,तीक्ष्ण
एवं प्रभावशाली....
और भी बहुत कुछ

mridula pradhan ने कहा…

bahut hi sunder.

mridula pradhan ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गहरे भाव लिए हुए
व्यंग्य रचना के लिए बधाई!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।

वाह जी ! बढ़िया व्यंग्य है ...

ज्योति सिंह ने कहा…

हम एक इंसान हैं
इसलिए परेशान हैं
चूँकि आप गिद्ध हैं
इसलिए प्रसिद्ध हैं ।
bahut badhiyaan

Saumya ने कहा…

bauhat sahi vyang kiya hai aapne...ek acchi soch chahiye cheezein badalne ki...but our aim shud be improvement and not only compalining......