शनिवार, 5 जून 2010

......ओह ! फिर भी इतनी भीड़ लोकतन्त्र की दुकान पर ?

मन्त्री

अधिकारी

माफिया

अपराधी

भ्रष्टाचारी

मँहगाई

आसमान पर ।

संविधान

नियम - कानून

नैतिकता

ईमानदारी

चरित्र

सद्भावना

श्मशान पर ।

होटलों मेँ रंगीनियाँ

सन्नाटा मकान पर ।

हम सब की उँगलियाँ

आँख और कान पर ।

फिर भी

इतनी भीड़

लोकतन्त्र की

दुकान पर ।

41 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

arunesh ji .
bhigo k mara hai .
wah.....wah.....
bahut jordar .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत ज़बरदस्त कटाक्ष....सटीक...

inqlaab.com ने कहा…

really its wonder full

sachi bata

Saumya ने कहा…

wah...aap bauhat sateek kataaksh karte hain....wonderfull!

दिनेश शर्मा ने कहा…

वाह! बेहतरीन।

Smart Indian ने कहा…

लोकतंत्र के साथ यही त्रासदी है

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

फिर भी

इतनी भीड़

लोकतन्त्र की

दुकान पर!

...पूर्ण विराम के स्थान पर विस्मयादिबोधक चिन्ह लगा दिया.
..आपके व्यंग्य सीधे चोट करते हैं . जिसे पढ़कर हर कोई कह उठता है..वाह क्या बात है !

Subhash Rai ने कहा…

Arunesh bhai, aap shabdon ko jis tarah nachate hain, mujhe bahut achchha lagata hai. Vyangy apni marakata men hi unchai pata hai aur vo marakata aap shabdon men paida kar lete hai.sadhuvad.

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Janta hairaan..
Sare pareshan..
Fir bhi chalti..
Loktantr ki dukaan..

"Wah" agar hum kah dete hain..
To ye chhota lage hame..
Janta ka dukh dard jo sara..
Kavita main hai dikha hamen..

Har kavita teri lagti hai..
Jaise teer sa lagta hai..
Shabdon ke teron se tera..
Tarkash bhara sa lagta hai..

Neeti, aneeti, loktantr..
Neta, abhineta ya janta..
Koi na bach paya tujhse..
Sab par teer tera chalta..

Yun hi tum duniya ko hardam..
Jaagruk karte rahna..
Shabdon ke jaadu se sabko..
Vashibut karte rahna..

Sundar rachna..

DEEPAK..

आचार्य उदय ने कहा…

आईये जानें .... मन क्या है!

आचार्य जी

कडुवासच ने कहा…

...बहुत सुन्दर ... बेहद प्रसंशनीय!!!

चैन सिंह शेखावत ने कहा…

sahi tasveer pesh kari hai aapne..yeh sachhai hai.

अरुण 'मिसिर' ने कहा…

यह तीर नहीँ है भाला है,
या आवाहन करती सबका
यह कोई क्रान्ति की ज्वाला है ?

सशक्त रचना

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Wahwa......Bahut Badiya....

अंजना ने कहा…

लोकतंत्र पर अच्छा व्यंग्य कसा है आप ने...

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

बेहतरीन .....

ज्योति सिंह ने कहा…

aap behtrin likhte hai anokha likhte hai ,aap ek sachche insaan bhi hai kabhi -kabhi lagta hai aapko guru banakar lekhan ki barikiya sikhoo .mujhe wo insaan sahi lagte hai jo uchit margdarshan karaye.aap kamiyo ko bhi darshate hai aur achchhaio ko bhi sarhaate hai ,ye sachche insaan ki pahchan hai ,mujhe achcha laga jab meri kisi rachna me aapne sudhar ka sujhao diya kyonki isse hi to hum behtar ban paayenge .likhne ki aadat chhut gayi rahi ,varso baad jo kalam chali to abhyaas aur gyan dono dheele ho gaye ,mitro ke jor par ye safar phir jaari hua .dekhe aap sabhi ke sahyog se kahan tak pahunchte hai .

सम्वेदना के स्वर ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सम्वेदना के स्वर ने कहा…

पण्डित जी,
चरण वंदना के उपरांत
आपकी असाधारण अभिव्यक्ति पर अपने साधारण उद्गार को रोक नहीं पाया.
आशा है इस धृष्टता को क्षमा करेंगे.

“मन्त्री/अधिकारी/माफिया/अपराधी/भ्रष्टाचारी/मँहगाई
सब के सब पसरे हैं मसनद पर.
संविधान/नियम – कानून/नैतिकता/ईमानदारी/चरित्र/सद्भावना
बाँधे हैं घुंघरू पैरों पर.
होटलों मेँ रंगीनियाँ
सन्नाटा मकानों पर ।
हम सबों की नज़रें नीची पाण्डवों सी
लोकतंत्र की द्रौपदी के चीर हरण पर ।
अब तो बस
मिलती है भीड़
राजनीति के ही कोठे पर!”

अरुणेश मिश्र ने कहा…

आदरणीया ज्योति जी . आपकी विनम्रता और सदाशयता हमारा मार्ग प्रशस्त करेगी ।
चि 0 सम्वेदना के स्वर . आपने कविता मे व्यंग्य को नया आयाम दिया है । आपकी इस रचनाशीलता का उत्तरोत्तर विकास हो . यह मेरी माँ से प्रार्थना है ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आज के टाइम में जब लोकतंत्र का तीनों पाया कमजोर हो गया है अऊर खुद को चौथा पाया बोलने वाला मीडिया तंत्र को भी बुनियादी रूप से दीमक खा गया है, तइयो लोकतंत्रके दोकान पर भीड़ है... होवेगा काहे नहीं, जनता पहले ही से चुसाया हुआ है, अऊर असली रस त ओही दोकान पर है..

हर्षिता ने कहा…

व्यंग भी चाशनी लगाकर किया है।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Bau jee, Namaste!
Thode dukhi hain, thode se haste!

Prabhu agar ye aakrosh janta ka mat (vote) ban jaaye, to loktantr ke grahakon kee soochi behtar ho sakti hai!

Achha hai, gussa achha hai!

Gaurtalab ने कहा…

bahut badhiya..

arvind ने कहा…

vaah...laajabaab itane kam shabdo me itani badi baat......bahut badhiya...teekha vyangya.

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

kya baat hai kya baat hai ...thos vyang.....chot par kise lagegi ..? hume ...jo loktantra me raja chunte hain ..ya jo raja hain unhe..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अफ .. तेज़ धार है आपकी कलाम की ... तीखी व्यंग की धार ...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

........oh.......!!arunesh.......jis tarah yah bheed.... aapke blog par......ha...ha...ha...ha...bahut chubhti hui kavitaa hai ye.....garche kisi ke paas chubne vali khaal bhi ho......

hem pandey ने कहा…

भीड़ तंत्र ही लोक तंत्र कहलाने लगा है.

Dimple Maheshwari ने कहा…

wah..kya kahne aapke/..koi bhla kis tarah se sochkar sirf shabdon ke mayajal se itni sarthk kavita rach sakta hain.....gajab

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

shabdo ki athaah gahrayi se kalam ko dubo diya hai. gagar me sagar kahna anuchit na hoga. prashansneeye rachna.

रचना दीक्षित ने कहा…

उफ्फ... फ... फ..सच बहुत ज़बरदस्त कटाक्ष बेहद प्रभावशाली रचना

आचार्य उदय ने कहा…

आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।

आचार्य जी

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, शानदार और ज़बरदस्त लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

Satish Saxena ने कहा…

हमारी समस्याएं हैं, साथ ही रहेंगी !

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही तगड़ा व्यंग्य....

शुभकामनाएं....

शोभना चौरे ने कहा…

bahut kam shbdo me aaj ka sach ujagar kiya hai .dhnywad

Sajal Ehsaas ने कहा…

ek ek shabd ka asar zordaar hai!!

Anand ने कहा…

Lajawab. padkar dang rah gaya

Basanta ने कहा…

वाह! वाह! जोरदार ब्यंग्य!

mridula pradhan ने कहा…

very good.