अपने देश मे कानून
मकड़ी का जाला है
जिसमे मक्खी फँस
जाती है
मच्छर फँस जाता है
झींगुर झन्नाता है ।
हाथी और घोड़ा
चीरता चला जाता है ।
ह
रविवार, 4 जुलाई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
समसामयिक विषयों पर साम्प्रतिक साहित्य व समाचार
37 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर, रचना!
सच कहा..आम जनता तो मक्खी मच्छर ही है...
.......सच कहा,सुन्दर रचना!
वाह! बहुत खूब!
शुभकामनाएं...
Are baba,machhar aur makhi bhi nikal padte hain!
kya kar sakte hain.......issi kanun ko jhelna hai........:)
ek saargarbhit rachna!
लोकतंत्र के इस स्तम्भ पर आपका सच्चा, बेबाक और नंगा बयान!!!
हाथी-घोड़ों का ही ज़माना है।
aapki rachna har baar naye andaaz me hoti hai ,sundar
जोरदार प्रहार
भाई क्या बात है .. सच सौ फ़ि सदी सच ... बड़ी मछलियाँ आसानी से निकल जाती हैं ...
Wah Arunesh bhai kya kahne..
Vywastha par chot karna aapki khubi hai..
Adweeteeya..
Deepak..
bahut khoob!
http://sparkledaroma.blogspot.com/
सच में हमारी व्यवस्था एक मकडी का जाला ही बन गई है जिसमे इन्सान एक बार फंस जाये तो निकल ना मुश्किल है । सटीक कविता ।
बहुत ही सटीक!
--
वास्तविकता भी यही है!
bahut achchi lagi.
आदरणीय अरुणेश मिश्र जी
नमस्कार !
बहुत संतुलित रचना है !
व्यंग्य बिना दिशाहीन हुए सीधा प्रहार करता है ।
… और यही है कविता की सार्थकता !
साधुवाद !
मैं छंदसाधक - आराधक हूं , लेकिन आपकी यह रचना प्रभावित करती है ।
आपको भी शस्वरं पर विजिट का आमंत्रण है , आइएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
व्यवस्था पर करारा प्रहार करती सुन्दर रचना है।
क्या बात । बहुत खूब ।
हाथी, घोडो में ही तो दम होता है सब कुछ तोड़ कर निकल जाने का.
तीखा कटाक्ष.
सच्ची बात कही है आप ने .....
कोई समझे तो जाने.....
मैने हिन्दी हाइकु बलॉग बनाया है....
कभी समय निकाल कर आना
लिंक है....
http://hindihaiku.wordpress.com
hindihaiku@gmail.com
हरदीप
Sir .....Apke blog par aakar jo kushi milli hai use main shabdon main vayan nahin kar sakta.
Aapne Hathi aur Ghode ke nikalne ki baat kahi.Jis arth men aapne ye baat kahi hai, us se men sahmat hun.
apvaadon ko chhod den to hamare desh ke qaanun se koi bhi kabhi bhi bach nikal sakta hai , bas use qaanuni daavpechon samjh aaten hon.
Aapne saral shabdon men itni badi baat kah di...ye mere liye bahut hi inspiring hai.
Iske liye.. aapka dhanaybaad, sir.
sshkt abhivykti
अपने देश मे कानून
मकड़ी का जाला है
जिसमे मक्खी फँस
जाती है
मच्छर फँस जाता है
झींगुर झन्नाता है ।
हाथी और घोड़ा
चीरता चला जाता है ..
वाह....बहुत खूब .....!!
सोचने का विषय है ... चोर तो चोरी ही करेगा चाहे राजा ही क्यों न बन जाये
सटीक ... व्यंग्य ...बहुत खूब
मकड़ी क़ा जला,
हाथी घोडा चिर फाड़ जाता है
सम सामयिक बहुत अच्छा.
धन्यवाद.
वाह ! क्या खूब कहा आपने।
बहुत सटीक बात कही इस रचना के माध्यम से.
main stabdh hun aapki soch se...bauaht acchi hai
bahut sundar rachna....ise b padiye-
http://zealzen.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
धारदार कटाक्ष।
अरुणेश भाई, आप की रचनायें नावक के तीर की तरह होती हैं. देखने में हो सकता है, छोटी लगें, पर घाव गम्भीर करती हैं. अपनी मार रखें इसी तरह बरकरार. आप नुक्कड़ पर तरल की दो लाइनें देखकर उस पर टिप्पड़ी दे गये. उनकी गजलें साखी पर लगीं हैं. url है==========
www.sakhikabira.blogspot.com
bahut badiya..
बहुत जबरदस्त व्यंग, सीधा प्रहार। समय मिले तो इसे भी देखिएगा।
http://veenakesur.blogspot.com/
बहुत जबरदस्त व्यंग, व्यवस्था पर सीधा प्रहार। समय मिले तो इसे भी जरूर देखिएगा।
http://veenakesur.blogspot.com/
बहुत सटीक!! सुन्दर!!
एक टिप्पणी भेजें