ओ मेरे मन !
कोई शार्टकट मारो ।
किसी महापुरुष की
आरती उतारो ।
कोई ऐसा स्विच दबाओ
धरती को ठोकर मारकर
आसमान चढ जाओ ।
उल्लुओं को सूर्य
जाने कब से लग रहा है
दृष्टिहीन ।
आदमी की शक्ल में
मशीन ।
औपचारिकता
घर घर आसीन ।
कृत्रिमता पदासीन ।
मानवता उदासीन ।
दानवता सत्तासीन ।
मंगलवार, 22 जून 2010
शुक्रवार, 11 जून 2010
हम तो हैँ कफनचोर राजा ! जनता से कह दो - प्रणाम करें ।
गैस काण्ड होते हैं
होने दो ।
पीड़ित जन रोते हैं
रोने दो ।
मरने दो . त्राहि त्राहि
करने दो ।
हमको निर्द्वन्द राज्य
करने दो ।
अर्जुन हम अपने को
कहते
लेकिन दुर्योधन का
काम करें ।
हम तो हैं कफनचोर
राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।
इण्डरसन के ही हम
सन हैं ।
अपने गुलाम अभी
मन हैं ।
जनता से अपना क्या
रिश्ता ?
अमेरिका अपना
फरिश्ता ?
आओ ! हत्यारों के
साथ रहें .
जनता के कष्ट बनें .
नाम करें ।
हम तो हैं कफनचोर राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।
हम तो जयचन्द
आदिकाल के ।
सबके मुँह बन्द .
हमे पाल के ।
मगरमच्छ नदियों के .
ताल के ।
हम ही पर्याय यहाँ
काल के ।
जनता मर जाय .
देश मिट जाए
फिर भी हम जेबों मेँ
दाम भरेँ ।
हम तो हैं कफनचोर
राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।
होने दो ।
पीड़ित जन रोते हैं
रोने दो ।
मरने दो . त्राहि त्राहि
करने दो ।
हमको निर्द्वन्द राज्य
करने दो ।
अर्जुन हम अपने को
कहते
लेकिन दुर्योधन का
काम करें ।
हम तो हैं कफनचोर
राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।
इण्डरसन के ही हम
सन हैं ।
अपने गुलाम अभी
मन हैं ।
जनता से अपना क्या
रिश्ता ?
अमेरिका अपना
फरिश्ता ?
आओ ! हत्यारों के
साथ रहें .
जनता के कष्ट बनें .
नाम करें ।
हम तो हैं कफनचोर राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।
हम तो जयचन्द
आदिकाल के ।
सबके मुँह बन्द .
हमे पाल के ।
मगरमच्छ नदियों के .
ताल के ।
हम ही पर्याय यहाँ
काल के ।
जनता मर जाय .
देश मिट जाए
फिर भी हम जेबों मेँ
दाम भरेँ ।
हम तो हैं कफनचोर
राजा !
जनता से कह दो
प्रणाम करें ।
शनिवार, 5 जून 2010
......ओह ! फिर भी इतनी भीड़ लोकतन्त्र की दुकान पर ?
मन्त्री
अधिकारी
माफिया
अपराधी
भ्रष्टाचारी
मँहगाई
आसमान पर ।
संविधान
नियम - कानून
नैतिकता
ईमानदारी
चरित्र
सद्भावना
श्मशान पर ।
होटलों मेँ रंगीनियाँ
सन्नाटा मकान पर ।
हम सब की उँगलियाँ
आँख और कान पर ।
फिर भी
इतनी भीड़
लोकतन्त्र की
दुकान पर ।
अधिकारी
माफिया
अपराधी
भ्रष्टाचारी
मँहगाई
आसमान पर ।
संविधान
नियम - कानून
नैतिकता
ईमानदारी
चरित्र
सद्भावना
श्मशान पर ।
होटलों मेँ रंगीनियाँ
सन्नाटा मकान पर ।
हम सब की उँगलियाँ
आँख और कान पर ।
फिर भी
इतनी भीड़
लोकतन्त्र की
दुकान पर ।
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