रविवार, 28 फ़रवरी 2010

होली के पावन पर्व पर आनन्द आपके साथ रहे । महामूर्ख कवि सम्मेलन मे राही जी मूर्खाधिराज घोषित सीतापुर- होली के अवसर पर प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष आयोजित महामूर्ख कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ । सनकी. डा0 मंजू . कमलेश धुरन्धर . रजनीश मिश्र . चैतन्य चालू .केदार नाथ शुक्ल .अविनाश त्रिवेदी ,विशेष शर्मा ,उदय प्रताप त्रिवेदी , आशुतोष श्रीवास्तव की कविताओँ को सुनकर श्रोता लोट पोट हो गये । पूर्व केन्द्रीय मन्त्री रामलाल राही मूर्खाधिराज घोषित किए गये । राही जी ने कहा हमारी तरीके से प्रत्येक राजनेता को अपनी मूर्खता पर गर्व है । सफल संचालन कमलेश मृदु ने किया । स्वागत अरुणेश मिश्र ने व धन्यवाद गोपाल टण्डन ने किया ।

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

ओ मेरे युगचारण !

बिना पुलिस के
कैसे संभव है
होली
दीवाली
ईद
मोहर्रम
कुम्भ
चुनाव
मंत्रीजी का भाषण
माननीयोँ का शहर
या गाँव मे निकलना


राशन
आपदा राहत
मनरेगा की मजदूरी का वितरण
जुलूस
धरना -प्रदर्शन
के आयोजन
बिना पुलिस के
कैसे हो पाएंगे ?
ओ मेरे देश बोलो !
इस सडाँध भरी राजनीति को हम सब
कितने दिन और ढो पाएँगे ?

अधिकारी कहते हैं
हम रिश्वत मे छोटे नोटों की गड्डियाँ नही लेते
कौन घण्टोँ गिने
पाँच या हजार के नोटोँ की
गड्डियाँ लाइये
आनन फानन मे
काम करवाइये
इस हाथ दीजिए
उस हाथ दीजिए

राजनेता कहते है
नोट नही
प्रकार मे रिश्वत दीजिए
फाइव स्टार मे
काम का परिणाम लीजिए
बाबू अब भी नोटोँ और
बोतलोँ मे फँसे है
हम सब लोकतन्त्र के
समारोह मे बहुत
गहरे तक धँसे हैँ

ऐसे मे
माननीय न्यायालय
और आमजनता
खोज रही है
नक्सलवाद के कारण
इसका किस तरह से
उत्तर दे पाएगे चारण
ओ मेरे युगचारण !!

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

जब हम पान खाते हैं तो देशभक्त हो जाते हैँ

जब हम पान खाते हैँ
तो हमे लगता है कि हम
पूरे देश को चबाते हैँ
और जो अपनी अपनी
गाडियों मे तिरंगा लहराते है वे देशभक्त कहे जाते हैँ
लेकिन ऐसा नही है
जो लोग पान खाते हैं
वह देशभक्त हो जाते हैं
और जो तिरंगा लहराते हैँ
वे पूरे देश को चबाते हैँ


यह तिरंगा क्या है ?
यह पान क्या है ?
हरा हरा पत्ता है
सफेद सफेद चूना है
केसरिया कत्था है
जिसके बीच मे
चक्रदार सुपाडी है
इलायची : हमारी संस्कृति
की गंध है
लौंग : हमारे पराक्रम की
सुगंध है
तम्बाकू : हमारे देश का
भ्रष्टाचार है
किवाम : छाया हुआ अनाचार है
इसलिए जब हम कभी पान खाते है
तो हमे लगता है कि
हम पूरे देश को चबाते हैं
और जो अपनी अपनी
गाडियों पर तिरंगा लहराते हैं
वे देशभक्त कहे जाते हैँ ।

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

प्रेमिकाएँ जामुन हैँ

प्रेमिकाएं जामुन हैँ

खट्टी मीठी

चिकनी

सुन्दर

आकर्षक

गूदेदार

स्वादिष्ट

कालीघटा वाली

गुठलीदार

इसे नमक के साथ खाइए

पूरा आनन्द पाइए

कुछ लोग इसे बिना

नमक के

खाते हैँ

उन सब के मुँह

बकठाते हैँ

जामुन का रंग पक्का
बिल्कुल पक्का
इन्द्रधनुषी
मिटाए मिटता नहीँ
छुटाए छुटता नहीँ

आप कहीँ से भी

जामुन खाकर आइए

चाहे जितना छिपाइए

पता चल जाएगा

ऐसे मेँ कोई

भला आदमी किस तरीके

से घर के बाहर

जामुन खाएगा

जामुन के शौकीन
इसे मेले से
ठेले से
बाजार से
सडक से
खरीद कर लाते हैँ
फिर इसे इत्मीनान से खाते हैँ

जो बेहद शौकीन हैँ

वह इसे पेड पर चढकर

खाते हैँ

कभी कभी जामुन खाने

के चक्कर मेँ

हाथ पाँव भी

टूट जाते जाते हैँ

मामला तब रोचक

हो जाता है

जब जामुन के स्वाद मे

खोए हुए लोग

स्वयँ भी जामुन के साथ
टूट जाते हैँ

और गिरते समय

प्राण भी छूट जाते हैँ ।
पेड

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

भाजपा ने कहा - हम मस्जिद बनवाएगे

अपने देश मे जब
आम मुसलमान नमाज पढता है
तो इंसानियत को राह मिलती है
और जब आम हिन्दू
राम राम कहता है
तो आनन्द की थाह मिलती है
लेकिन जब फिरकापरस्त
नमाज पढता है
तो जनमानस उदास होता है
और जब राजनेता राम राम कहता है
तो राम को
वनवास होता है ।

कहो तिवारी कहाँ चले !! नारायण भाई , नारायण !!

राजनीति के देवालय मे
वेश्यालय का रूप देखिए ।
ऊपर से चिकने चुपड़े हैँ
अन्दर रूप कुरूप देखिए ।

कैसे कैसे दुर्योधन हैँ
काले मन हैँ , उजले तन हैँ ।
क्या करते हैँ सभी जानते
इनके पास नही दरपन हैँ ।

इज्जत लेकर बढे पले ।
कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण !!

डिब्बे च्यवनप्राश के खाए
तभी छियासी के हो पाए ।
महिलाओँ को हीँग समझ कर
व्यञ्जन तरह तरह के खाए ।

जितनी अधिक नीचता जिसकी
उतनी ऊँची कुर्सी उसकी ।
अनाचार के सेमिनार मे
गणना करेँ कहाँ तक किसकी ।

मूल्यवान हैँ सडे गले ।

कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण ।

त्यागपत्र देने से क्या है
इज्जत ले लेने से क्या है ।

राजकाज हैँ , रखा ताज है
ऐसे मे फिर कहाँ लाज है ।

साम दाम है ,राम राम है
शीलहरण तो सुबह शाम है ।
यही काम है , यही जाम है
चमक रहा हर तरफ नाम है ।

संगी साथी भले भले ।

कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण ।

राजेन्द्र अवस्थी : काल चिँतन की शरण मेँ . श्रध्दाञ्जलि

कादम्बिनी के संपादन में काल चिँतन का बोध कराने मे निष्णात सुधी साहित्यकार राजेन्द अवस्थी काल के कराल हाथोँ छले गये । साहित्य तथा पत्रकारिता को उनका योगदान स्मरणीय रहेगा ।

श्रध्दाञ्जलि ।




क्या काल चिंतन को साहित्य माना जाएगा ?

कादम्बिनी की वर्तमान दशा देखकर आपको कैसा प्रतीत होता है ?


कादम्बिनी के संपादक -

रामानन्द दोषी
राजेन्द्र अवस्थी
कन्हैया लाल नंदन
मृणाल पाण्डेय

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

RAFIQ SADANI KO SHRADHANJALI

kavi sammelan se vapas aate samay gonda ke pas car durghatagrast hone se hasy ke mashhur kavi rafiq sadani ki moit se kavi jagt dukhi hai,hardik shradhanjali.

antas ki ly rkhte hai jivan mei.
anushashan ki argala nhi rkhte
aksar bchate hai milne julne se
milte hai to fasala nhi rkhte.
awaj talkh hai tikhi hai to hai
hm do swar wala galaa ....aaa nhi rkhte .
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- SHIVAOM AMBAR