रस रंग की बात
करो न अली !
बस रूप को
माँगने वाले मिले ।
सुख जानने वाले
अनेक मिले .
दुख देखकर
भागने वाले मिले ।
सुमनोँ को मिला
जहाँ गन्ध पराग
वहाँ कण्टक
मतवाले मिले ।
कितनी बड़ी त्रासदी
है जग मेँ
अपनाकर
त्यागने वाले मिले ।
शनिवार, 18 सितंबर 2010
शनिवार, 11 सितंबर 2010
एक छंद : विसंगति
जिसको यहाँ कंचन
रूप मिला
उसको प्रिय गेह
मिला ही नही ।
सुमनो को मिला
रस गंध पराग .
परन्तु सनेह
मिला ही नही ।
भ्रमरो ने किया
रसपान सुचारु
कभी अधरोँ को
सिला ही नही ।
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।
रूप मिला
उसको प्रिय गेह
मिला ही नही ।
सुमनो को मिला
रस गंध पराग .
परन्तु सनेह
मिला ही नही ।
भ्रमरो ने किया
रसपान सुचारु
कभी अधरोँ को
सिला ही नही ।
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
घनश्याम ; एक छंद
छंद में भगवान कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति है । अप्रैल 1998 ।
घनश्याम के अंक
लगी लगी मैं
कर पल्लव बेनु
बनी हुई हूँ ।
चिर साधिका हूँ
मनमोहन की
रति रंग की धेनु
बनी हुई हूँ ।
सखि ! नेह की डोर से
हूँ बँधी मैं
मनमोहन रूप
सनी हुई हूँ ।
स्वर , रश्मियों में
उन्मत्त हूँ मैं
पद पंकज रेनु
बनी हुई हूँ ।
घनश्याम के अंक
लगी लगी मैं
कर पल्लव बेनु
बनी हुई हूँ ।
चिर साधिका हूँ
मनमोहन की
रति रंग की धेनु
बनी हुई हूँ ।
सखि ! नेह की डोर से
हूँ बँधी मैं
मनमोहन रूप
सनी हुई हूँ ।
स्वर , रश्मियों में
उन्मत्त हूँ मैं
पद पंकज रेनु
बनी हुई हूँ ।
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