ओ मेरे मन !
कोई शार्टकट मारो ।
किसी महापुरुष की
आरती उतारो ।
कोई ऐसा स्विच दबाओ
धरती को ठोकर मारकर
आसमान चढ जाओ ।
उल्लुओं को सूर्य
जाने कब से लग रहा है
दृष्टिहीन ।
आदमी की शक्ल में
मशीन ।
औपचारिकता
घर घर आसीन ।
कृत्रिमता पदासीन ।
मानवता उदासीन ।
दानवता सत्तासीन ।
मंगलवार, 22 जून 2010
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40 टिप्पणियां:
ekdam sateek rachna...bhaisahab..
अच्छी रचना।
Har bar ki tarah achchi khabar li aapne.shubkamnayen.
Danav to hain sattaseen,par kyon hain? Kya hamare samaj me,jiska ham bhi hissa hain, sirf wahi rah gaye hain?
पंडित जी, जय हो!
क्या खींचा है आपने सीन…
मन सचमुच हुआ है उदासीन...
वर्त्तमान समाज की सच्ची तस्वीर.
आशा है नई जगह और नए पद पर हो गए होंगे सामान्य तौर पर आसीन! पुनः शुभकामनाएँ!!
बहुत बढ़िया! जब मानवता उदासीन होगी तब ही दानवता सत्तासीन होगी।
aap ki kavita bhav adbhud hai kitne asani se sachi bat kahe deta hai...
thoughtful composition....and i'm astounded ki itne kam shabdon mein aap kitna gehra vyanga kar dete hain...a must read piece
कभी-कभी यूँ भी होता है...
ओ मेरे मन !
कोई शार्टकट मारो ।
..दर्द जब बढ़ जाता है.
@-मानवता उदासीन ।
This is the actual tragedy !
कृत्रिमता पदासीन ।
मानवता उदासीन ।
दानवता सत्तासीन .
बहुत बढ़िया व्यंग...
अरुणेश जी,
हम नहीं कहेंगे आमीन।
सही कहा...अच्छी रचना।
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है!
औपचारिकता
घर घर आसीन
कृत्रिमता पदासीन
मानवता उदासीन
दानवता सत्तासीन
बहुत लाजवाब कहा है ... मानवता के पतन और दानैवता के उदय का समय ही चल रहा है ...
वाह,
आपने खीँच दिया
वर्तमान का नंगा सीन।
ओह....मंत्रमुग्ध कर लिया आपकी इस रचना ने...प्रशंशा को शब्द नहीं मेरे पास...
अद्वितीय अप्रतिम !!!
बहुत सुन्दर और सठिक रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!
wah wah! kya baat hai!!!
http://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
एक शे'र याद आया...
यार बना कर मुझको सीढी तू बेशक सूरज हो जा..
देख ज़रा मेरी भी जानिब , मुझको भी कुछ बख्श जलाल...
चांटा लगाती कविता...
Wah Chacha, kya yatharth varnan kiya hai manavata evam danavata ki prasangikata ka! Ati sunder.
"आदमी की शक्ल में
मशीन ।"
क्या व्यंग है। बहुत खूब ।
बहुत खूब
Aruneshji
Thank you so much for visiting my blog and leaving the comment. I do write poems in Kannada, I never thought I will write Hindi poem. My daughter inspired me to write one.
Keep visiting and encouraging me.
सटीक शब्दों में उत्तम रचना
आभार
उल्लुओं को सूर्य
जाने कब से लग रहा है
दृष्टिहीन ।
tikha prahar .....@@
दानवता सत्तासीन ।!!!
बिल्किल सही बयाँ है आपका ! सत्ता में राक्षसी प्रवृति समा गई है ! तब मशाल हम साधारण लोंगो के हाथों में है ! यह कविता जाग्रति पैदा करती है ! आभार !
औपचारिकता
घर घर आसीन ।
कृत्रिमता पदासीन ।
मानवता उदासीन ।
दानवता सत्तासीन ।
बहुत ही सहजता से सभी "सीन" व्यंग्य का सीन उपस्थित कर रहे हैं, बहुत बहुत बधाई!
ek ek pankti asardaar............sthitee parivartan ke liye sabheeko milkar kadam uthane honge...........jaroorat hai ek shaandar netratv kee.
achchhi khichai kar dali in shabdo ne ,sundar behad sundar
उल्लुओं को सूर्य
जाने कब से लग रहा है
दृष्टिहीन ।zabardast
मैंक्या अरुणेश जी,
तुस्सी कित्थों लब लेने हो इद्दा दी कवितायें?
वधिया छत्तर मारे हैं, वो वी भे-भे के!
हिंदी में: अचूक!
आप भी ऐसा कहेंगे...
मानव मानव का भला भी न सोचेंगे
तो फिर क्या हाल होगा.
सिर्फ रोने से काम न चलेगा
कलम की धार तेज करिये
इसकी नोक से
उन सत्ता-धारियों को
खरोंचे दीजिए..
apne shabdo ka jadu dikhao
switch aisa koi dabao
kritrimta ko door bhagao
danavta ka muh chidao
kalam ka kuchh jadu dikhao.
अनामिका जी . आपका परामर्श स्वीकार है । सुझाव देती रहें ।
shandaar.........:)
I'm speechless...sir.
you are right, sir.
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