इस मामले में तो हम ऐसे लोगों को हमारे मुकाबले बेचारों की श्रेणी में रखते हैं। इतनी सी आजादी भी नहीं होगी इन्हें कि खुलकर हंस भी सकें। शीर्षक और भी धांसू लगा।
af karen louta to phir chheenk aa gayee to lout aayaa--अरुणेष जी! प्रभाव जरा देखिए ...रंग देखिए...
एक छींक मेंढक की जो नहीं होती एक छींक ऐसी कि मां रात भर नही सोती एक छींक वह जो घर से निकलने नहीं देती एक छींक ऐसी जो निकले हुए शब्दों को गलने नहीं देती एक छींक फेंफड़ों को स्वस्थ बनाती है क्या करें कहते हैं गधों को छींक नहीं आती है।
एक छींक हवा में खप जाती है । एक छींक अखबारों में छप जाती है । अरुणेष जी! aadarniy sir chhik ke baare me bilkul sahi drishhti kon.sabki apni apni kimat hai. poonam
पंडित जी, पता नहीं कैसे ये मुझसे छूट गई... इतना अंधविश्वासी भी नहीं कि ममूली सी छींक के डर से आपके दर पर न जाऊँ...माफी के बाद … इतना ही कहूँगा कि हमारे पैर, पैर..उनके पैर चरण. इसीलिए हमारी छींक हवा की तरह बस निकल जाती है और उनकी छींक छौंक लगाकर छपती है... अच्छा व्यंग्य!
बप्पी लहरी ने गाया है अरुणेश जी, देश की माँ, सोनिया जी! सारी जानता की माँ, सोनिया जी! अब इतना तो वो डिज़र्व करती ही हैं! हा हा हा...... बाउजी, वहुत कम में बहुत कुछ कहना..... कोई आपसे सीखे!
चरैवेति - चरैवेति .
अरुणेश मिश्र हिंदी के सुप्रतिष्ठित कवि। 1978 में कानपूर विश्वविद्यालय से M. A. ( हिंदी ) स्वर्णपदक के साथ । सम्प्रति - principal. सम्पादन -तरुण क्रान्ति , व्योम जगत . दैनिक प्रतिदिन . स्मारिका सीतापुर महोत्सव . सरस्वती सुमन .खंडकाव्य - कारगिल का बलिदान बोलता है (1999) . हिंदी मंच पर व्यंग्य के चर्चित कवि , संचालक ,समीक्षक
--- डॉ। रणजीत
52 टिप्पणियां:
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
छींक-छींक का फ़र्क़ लाजवाब ह!
इस मामले में तो हम ऐसे लोगों को हमारे मुकाबले बेचारों की श्रेणी में रखते हैं। इतनी सी आजादी भी नहीं होगी इन्हें कि खुलकर हंस भी सकें।
शीर्षक और भी धांसू लगा।
वाह क्या बात है...
छींक छींक में फर्क है
waah !naam walo ki aam baate bhi khas hoti hai ,tabhi to har koi khas banna chahta hai .aapki rachna me bhi aesi hi baat hai ,umda .
हा हा हा...सच में नाक का ही फर्क है....
Bhai sab..
Pranam..
Chinkon main antar sada..
Aisa Bharat desh..
Akhbaron ki surkhiyan..
Gar ho vyakti vishesh..
Dudh duhen jab log sab..
Duniya hai anjaan..
Aur duhen Lalu agar..
Duniya jaati jaan..
Patrkaar hain ghumte..
Kalam camera hath..
Par ye sab chalte agar..
Koi neta sath..
Deepak
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
shikha varshney ने कहा…
वाह....सब अपनी अपनी नाक का फर्क है जी ...
baat jagah jagah ki hai......!!
badi gahri baat.......
Gazab....................I don't have any other word for this nice....post.
सोचने वाली बात हो गई....
______________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
छींक छींक में फर्क है..........शीर्षक भी धांसू लगा।
एक छींक हमारी है जो कविता बन जाती है .......
अब हम सोनिया जी जैसा विदेशी नाक कहाँ से लायें .....???
बहुत खूब ......!!
छींक-छींक का फ़र्क़ तो रहेगा ही।
छींक से आम आदमी और खास आदमी का बहुत सुंदर दृष्टांत दिया है आपने ।
आम आदमी की बीमारी की भी कोई खबर नहीं
खास आदमी को छींक भी आती है तो खबर बनती है
वाह वाह ... वाह वाह ... क्या बात है ... सोनिया जी जो हैं .... उनकी छींक भी किस्मत वाली है ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
हर छींक की किस्मत होती है..
एक छींक
हवा में खप जाती है ।
एक छींक
अखबारों में छप जाती है ।
अरुणेष जी!
चिकौटी असर कर गई..यह चुभन हमेशा सनसनाती रहेगी..
af karen louta to phir chheenk aa gayee to lout aayaa--अरुणेष जी!
प्रभाव जरा देखिए ...रंग देखिए...
एक छींक
मेंढक की जो नहीं होती
एक छींक ऐसी कि
मां रात भर नही सोती
एक छींक वह
जो घर से निकलने नहीं देती
एक छींक ऐसी जो
निकले हुए शब्दों को गलने नहीं देती
एक छींक
फेंफड़ों को स्वस्थ बनाती है
क्या करें
कहते हैं गधों को छींक नहीं आती है।
वाह! क्या बात है! लाजवाब प्रस्तुती!
हा हा हा... अपनी अपनी नाक का फर्क है |
हा.हा.हा.
वो छींक पूरे हिन्दुस्तान को हिला सकती है..क्या हमारी छींक में वो दम है ?
एक छींक
हवा में खप जाती है ।
एक छींक
अखबारों में छप जाती है ।
अरुणेष जी!
aadarniy sir chhik ke baare me bilkul sahi drishhti kon.sabki apni apni kimat hai.
poonam
अरुणेश जी
भारत में गोरी चमड़ी की आज भी बहुत कीमत है.
पंडित जी, पता नहीं कैसे ये मुझसे छूट गई... इतना अंधविश्वासी भी नहीं कि ममूली सी छींक के डर से आपके दर पर न जाऊँ...माफी के बाद … इतना ही कहूँगा कि हमारे पैर, पैर..उनके पैर चरण. इसीलिए हमारी छींक हवा की तरह बस निकल जाती है और उनकी छींक छौंक लगाकर छपती है... अच्छा व्यंग्य!
bahoot khoob likha aap ne
बप्पी लहरी ने गाया है अरुणेश जी,
देश की माँ, सोनिया जी!
सारी जानता की माँ, सोनिया जी!
अब इतना तो वो डिज़र्व करती ही हैं!
हा हा हा......
बाउजी, वहुत कम में बहुत कुछ कहना..... कोई आपसे सीखे!
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
वाह!! वाह!! क्या बात है!!
Ha,ha,ha!
wah!
bhai wah kya bat hai, bahut khub kaha aapne
कमाल की छींक है भैया, बहुत सुन्दर!
www.mathurnilesh.blogspot.com
aapki nai post kholne ki bahut koshish ki magar khul nahi rahi .
मुझे तो पढ़ कर ही छींक आ गयी
क्या बात है. राजा और फकीर का अंतर बता दिया.
अरुणेश मिश्र जी
नमस्कार !
कमाल है आपकी कविता !
एक छींक हमारी …
एक छींक सोनिया जी की …
संक्षेप में सटीक तीर चलाना तो कोई आपसे सीखे ।
वाह वाह !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
छींक- छींक में यह कैसी असमानता
क्या यही मेरे भारत की महानता.....????
बहुत खूब ...
हमारी छींक हम तक ही सीमित रह जाती है....और सोनियाजी कीछींक उत्पात मचाती है!!....सही कह रहे है आप!
bahut khub sir , aasha he aapki kavitao ko padh kar kaafi kuch sikhne ko milega.
http://bejubankalam.blogspot.com/
रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आपको हार्दिक बधाई !!
ek aam aur khash admee ki jindagee me yahi fark hota hai
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