गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं । ( इस रचना का दृश्य प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध है )

महाबली हम , बाहुबली हम ।
आतंकी हम . महाछली हम ।
रौंद रहे हैँ कली कली हम ।
लोकतंत्र की परखनली हम ।

न्याय और अन्याय हमीं से ।
संकट और उपाय हमीं से ।
सभी लोग निरुपाय हमीं से ।
जनमानस असहाय हमी से ।

सत्यवादियों को देखा तो
लगा सभी सिरफिरे हुए हैं ।
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

झूठे सब आश्वासन बाँटे ।
बिखराए राहो में काँटे ।
ताल तलैया झाबर पाटे ।
नैतिकता को मारे चाँटे ।

हिंसा , दुराचार के भ्राता । अपराधों से सीधा नाता ।
जातिवाद के आश्रयदाता । काला पैसा नकली खाता ।

मेरे रुतबे के आगे तो
सब रुतबे किरकिरे हुए हैं । हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

शासन और प्रशासन अपना ।
दल अपना सिंहासन अपना ।
धौंस धाँय दुःशासन अपना ।
भाषण अपना राशन अपना ।

नदी - नहर , धन - धरती अपनी ।
बंजर अपनी , परती अपनी ।
जो भी है सब अपना अपना ।
सफल हुआ जीवन का सपना ।

गिरे हुए जो लोग यहाँ हैं । इधर उधर या जहाँ तहाँ हैँ ।
मत खोजो वे कहाँ कहाँ हैं । जगह जगह हैँ
यहाँ वहाँ हैँ ।

हम इतना गिर गये साथियो !
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

20 टिप्‍पणियां:

Pratul Vasistha ने कहा…

laajawaab rachnaa. saral shbad, saamaajik charitron ki vyaakhaa laybaddh. pasand aane waali tukbandi.

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

झनकार ने कहा…

अरुणेश जी का कवि एवं व्यक्ति प्रियता, शिवता व सजगता से सम्प्रक्त होने के साथ मस्त उत्साह व सहजता का अद्भुत रंगमंच है
पच्चीस वर्षो से वे अपने प्रखर सामायिक साहित्य के साथ हमारे पास है हमारे मित्रो के लाडले है हम इस संयोग के अभिमानी है

Smart Indian ने कहा…

बहुत सुन्दर और सटीक!

sandhyagupta ने कहा…

Pahli baar aapke blog par ana hua.Rachnayen gehra asar chodti hain.shubkamnayen.

ज्योति सिंह ने कहा…

aapki rachna kafi prabhavshaali lagi
न्याय और अन्याय हमीं से ।
संकट और उपाय हमीं से ।
सभी लोग निरुपाय हमीं से ।
जनमानस असहाय हमी से
गिरे हुए जो लोग यहाँ हैं । इधर उधर या जहाँ तहाँ हैँ ।
मत खोजो वे कहाँ कहाँ हैं । जगह जगह हैँ
यहाँ वहाँ हैँ ।
behad shaandaar ,aap aaye behad khushi hui ,aapki salah amrit hai ,shayad isse behtar kar pau .shukriyaan.

jayanti jain ने कहा…

हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं
wah! 100 % truth

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ........sahi kaha

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! लाजवाब रचना ! बधाई!

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

ek bahut hi jivant rachna.ati uttam.

Saumya ने कहा…

bauhat achcha likha hai aapne...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

हम इतना गिर गये साथियो !
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?
हम तो इतना गिरे हुए हैं ।
गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।

आपकी रचना प्रभावित करती है .....!!

हेमन्त कुमार ने कहा…

यही तो विडंबना है....!

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Apanatva ने कहा…

bemisaal rachana.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति....सारे दृश्य आँखों के सामने आ गए....बढ़िया कटाक्ष है...

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

bahut hi achhi lagi aapki rachana ek kranti jagati hui si.
poonam

संगीता पुरी ने कहा…

इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

kshama ने कहा…

हम इतना गिर गये साथियो !
लोग कह रहे उठे हुए हैं ?
हम तो इतना गिरे हुए हैं । गिरे हुओं से घिरे हुए हैं ।
Gazabki sashakt lekhni hai!

chaibiskutt ने कहा…

सिर्फ एक शब्द ही काफी है इस रचना के लिए "लाजवाब"...
इतने खास अंदाज़ से आपने लफ़्ज़ों को पिरोकर ये रचना गढ़ी है कि मेरे जैसे नए-नवेले ब्लोगिये को बहुत प्रेरणा मिलेगी...शुक्रिया.