शनिवार, 8 जनवरी 2011

यह भारत माँ के कलंक हैं । इनसे बचकर रहना मित्रोँ !

सत्य अहिंसा परम धर्म है ।

भेदभाव मत सहना
मित्रों ।

शासन मे बैठे लोगों के

बड़े बड़े घोटाले देखे ।

नैतिकता पर ताले देखे ।

नेता . अफसर और

माफिया

हम बिस्तर

हम प्याले देखे ।

राष्ट्रवाद का स्वर

अलापते

भ्रष्ट आचरण वाले देखे ।

ऊपर से चिकने चुपड़े हैँ
अन्दर अन्दर काले देखे ।

यह भारत माँ के कलंक हैं
इनसे बचकर रहना मित्रो !

पढ़ लिखकर नौकरी पा गये ।
भ्रष्ट हुए योजना खा गये पद पाकर धनवान हो गये ।
सत्ता मिली महान हो गये ।
माता पिता सभी को भूले अहंकार मे रहते फूले धर्म कर्म ईमान बेचकर
हिला रहे जनता की चूलें

यह भारत माँ के कलंक हैं ।
इनसे बचकर रहना मित्रों !

सदनों मे हैं चोर उचक्के देखो ! घूसखोर हैं पक्के
जिन्हे देख सब हक्के बक्के
भले आदमी खाएँ धक्के ।
सांसद और विधायक निधि ने
जाम किए शासन के चक्के ।
घोर कमीशनबाजी देखो
अनाचार के चौए छक्के ।

यह भारत माँ के कलंक हैं
इनसे बचकर रहना मित्रों ।

( क्रमश: )

30 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

सत्य अहिंसा परम धर्म है ।

भेदभाव मत सहना
मित्रों ।

बहुत सटीक समसामायिक रचना -
बधाई एवं शुभकामनाएं

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना, काश !ये मित्रगण आपकी बात सुन पाते !

मुदिता ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मुदिता ने कहा…

अरुणेश जी

बहुत प्रवाहमय तरीके से आपने सावधान किया है..किन्तु बार बार यही कलंक सत्ता में आ जाते हैं... सामायिक रचना.. बधाई आपको इस सार्थक लेखन के लिए

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सही विषय उठाये आपने।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कविता जी

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सीधी-सपाट, खरी-खऱी।

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

बहुत सुंदर कविता

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

khari khari pravaahmay prabhaavotpd rachna.

dipayan ने कहा…

सत्य अहिंसा परम धर्म है ।
भेदभाव मत सहना
मित्रों ।....
बहुत सुन्दर लेख ।
नये साल की बधाई स्वीकारे ।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kaash in kalanko se dur rah pate...:(

pyari rachna ke liye sadhuwad...

अरुण अवध ने कहा…

यह कविता नहीं पोस्टर है ,खूंखार दरिंदों के खिलाफ
सीधी कार्यवाही है ! व्यंग की अग्नि मिसाइल सरीखी
इस रचना के लिए आपको बहुत बधाई !!

Dev ने कहा…

बहुत खूब कटाक्ष अरुणेश जी.

अंजना ने कहा…

सुन्दर रचना

Creative Manch ने कहा…

"शासन मे बैठे लोगों के
बड़े बड़े घोटाले देखे ।
नैतिकता पर ताले देखे ।
नेता, अफसर और माफिया
हम बिस्तर, हम प्याले देखे ।"

आज का सामयिक सच
बहुत ही करारा कटाक्ष
बहुत पसंद आई आपकी रचना
बधाई
आभार

गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं

Saumya ने कहा…

everyday the newspaper is full of their kaale kaarnamaas.....what shd i say?

ज्योति सिंह ने कहा…

सदनों मे हैं चोर उचक्के देखो ! घूसखोर हैं पक्के
जिन्हे देख सब हक्के बक्के
भले आदमी खाएँ धक्के ।
सांसद और विधायक निधि ने
जाम किए शासन के चक्के ।
घोर कमीशनबाजी देखो
अनाचार के चौए छक्के ।

यह भारत माँ के कलंक हैं
इनसे बचकर रहना मित्रों
bilkul sach hai ,gantantra divas ki badhai aapko .jai hind ।

मनोज भारती ने कहा…

सीधी सरल बात ...कटाक्ष भी,सबक भी

Crazy Codes ने कहा…

spast baat... aage ka intjaar hai...

Satish Saxena ने कहा…

कहाँ तक बचें ...कैसे बचें ? जहाँ जाते हैं यही मिलते हैं !शुभकामनायें मिश्र जी !

Dinesh pareek ने कहा…

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/
http://dineshsgccpl.blogspot.com/

Crazy Codes ने कहा…

bhedbhaav ke bina aap samaaj sonch bhi lete hai??? mujhe to ye mrigtrishnaa si maaloom hoti hai... aadmi ka man kabhi kisi ko khud ke baraabar sweekaar nahi paata aur khud ko dusron ke baraabar pahuncha paane kee himmat juta nahi paata....

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aadarniy sir
apki rachna ki har panktiyo k ek ek shabd se yatharth jhalakta hai.bahut sateek aur samyik prastuti
bahut bahuthardik badhai.
haedik abhinandan
poonam

ekal !!! ek awaaz ने कहा…

wow sir aapne to safed poshak dhariyo ko puri tarah se nirvastr kar diyaa!!!!!!!1

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर आव्हान

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

अरुणेश जी ,
सार्थक लेखन के लिए बधाई .सटीक समसामायिक रचना .....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




आदरणीय अरुणेश मिश्र जी
सादर नमस्कार !

शासन मे बैठे लोगों के
बड़े बड़े घोटाले देखे ।
नैतिकता पर ताले देखे ।

नेता . अफसर और माफिया
हम बिस्तर हम प्याले देखे ।

राष्ट्रवाद का स्वर अलापते
भ्रष्ट आचरण वाले देखे ।

ऊपर से चिकने चुपड़े हैँ
अन्दर अन्दर काले देखे ।

यह भारत मां के कलंक हैं
इनसे बचकर रहना मित्रो !

बड़ी ओजपूर्ण और सच्ची ईमानदार रचना है …
आभार और बधाई !

इस रचना की अगली कड़ी पढ़ने की बहुत इच्छा रहेगी …

पता नहीं क्यों आपने लंबे समय से नई पोस्ट नहीं डाली है … !?
ईश्वर से प्रार्थना है … आप सपरिवार स्वस्थ-सानंद हों …
नई पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी :)
… … …


त्यौंहारों के इस सीजन सहित
आपको सपरिवार
दीपावली की अग्रिम बधाइयां !
शुभकामनाएं !
मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

नववर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ

Unknown ने कहा…

अरुणेश मिश्रा जी आपने बड़ी ही सरलता व सजगता के साथ अपना यह रचना लिखी है......इस रचना में आपने आम जनता को भारत देश के तमाम सारे कलंक से बचने का राह दिखाया है....जो बहुत ही सराहनीय है....इस रचना के लिए आपको बधाई...ऐसी रचनाओं का इंतज़ार शब्दनगरी के पाठकों को हमेशा रहता है....आपसे अनुरोध है आप शब्दनगरी पर भी अपनी रचनाये व लेख लिखे....