गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

कहो तिवारी कहाँ चले !! नारायण भाई , नारायण !!

राजनीति के देवालय मे
वेश्यालय का रूप देखिए ।
ऊपर से चिकने चुपड़े हैँ
अन्दर रूप कुरूप देखिए ।

कैसे कैसे दुर्योधन हैँ
काले मन हैँ , उजले तन हैँ ।
क्या करते हैँ सभी जानते
इनके पास नही दरपन हैँ ।

इज्जत लेकर बढे पले ।
कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण !!

डिब्बे च्यवनप्राश के खाए
तभी छियासी के हो पाए ।
महिलाओँ को हीँग समझ कर
व्यञ्जन तरह तरह के खाए ।

जितनी अधिक नीचता जिसकी
उतनी ऊँची कुर्सी उसकी ।
अनाचार के सेमिनार मे
गणना करेँ कहाँ तक किसकी ।

मूल्यवान हैँ सडे गले ।

कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण ।

त्यागपत्र देने से क्या है
इज्जत ले लेने से क्या है ।

राजकाज हैँ , रखा ताज है
ऐसे मे फिर कहाँ लाज है ।

साम दाम है ,राम राम है
शीलहरण तो सुबह शाम है ।
यही काम है , यही जाम है
चमक रहा हर तरफ नाम है ।

संगी साथी भले भले ।

कहो तिवारी कहाँ चले ।
नारायण भाई , नारायण ।

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