जिसको यहाँ कंचन
रूप मिला
उसको प्रिय गेह
मिला ही नही ।
सुमनो को मिला
रस गंध पराग .
परन्तु सनेह
मिला ही नही ।
भ्रमरो ने किया
रसपान सुचारु
कभी अधरोँ को
सिला ही नही ।
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।
शनिवार, 11 सितंबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
40 टिप्पणियां:
kamal kr diya .
great chhand .
fool to gandh bikher gaya
kitno ko hi nij gandh se moh liya
bramoron ne kiya utsarg parm
nig ko pankuriyon me bindh liya
jal deep mey pyara patang gaya'
apne to amar balidan kiya
sarvaswa samapn ka sabney
hm sabko hi sandesh diya.
aapki racna sundartm
अदभुत!!!! ..जग में व्याप्त विसंगतियों का बेहतरीन चित्रण
ब्रह्माण्ड
गणेशोत्सव और ईद की हार्दिक शुभकामनाएँ
बीच से कोई कर्तन निकालना शायद उचित नहीं होगा क्योंकि पूरा छंद ही लाजबाब है !
प्रभावशाली,सुंदर,लाजवाब रचना..
Bina shool ke dil bhi nahi khilta!
बिना शूल कभी फूलखिला ही नहीं -
बहुत सुंदर रचना -
कटु सत्य लिखा है आपने-
अद्वितीय-
शुभकामनाएं .
बहुत सुन्दर ..जीवन इन विसंगतियों के बीच ही जिया जाता है ..
kvita ke sath sath geetatmkta ka vishesh gun hmahit hai agr usi bhav se kvita ka rsaswadn kiya jaye .bhut sunder .
इस विडम्बना का नाम ही जीवन है....खूबसूरत रचना
वंदना
इस विडम्बना का नाम ही जीवन है....खूबसूरत रचना
वंदना
इस विडम्बना का नाम ही जीवन है....खूबसूरत रचना
वंदना
विसंगति
जिसको यहाँ कंचन रूप मिला
उसको प्रिय गेह मिला ही नहीं।
सुमनों को मिला रस गंध पराग
परन्तु सनेह मिला ही नहीं।
भ्रमरों ने किया रसपान सुचारु
कभी अधरों को सिला ही नहीं।
प्रिय कैसी विसंगति है जग की
बिना शूल के फूल खिला ही नहीं।
भाव गंभीर हैं. आपकी रचना सराहनीय है.
बिना शूल, फूल नहीं खिलता,
अब कहीं वह फूल नहीं मिलता।
सुन्दर रचना।
शूल तो फूल के रक्षक हैं वैसे ही जैसे नेताजी के कमांडो।
पन्डित जी... आज आपकी इस रचना पर हमारा मौन प्रणाम स्वीकारें. नत हैं हम इस रचना के समक्ष!!
भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें! गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें !
अद्भुत सुन्दर रचना!
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ । ...khubasurat rachna.
ये विसंगतियां ही इस दुनिया को रोचक बनाती हैं, नहीं तो ये दुनिया बड़ी बोरिंग हो जायेगी।
सीरियसली कहें तो बहुत खूबसूरत छंद है, बधाई और
आभार स्वीकार करें।
जिसको यहाँ कंचन रूप मिला
उसको प्रिय गेह मिला ही नहीं।
सुमनों को मिला रस गंध पराग
परन्तु सनेह मिला ही नहीं।
भ्रमरों ने किया रसपान सुचारु
कभी अधरों को सिला ही नहीं।
प्रिय कैसी विसंगति है जग की
बिना शूल के फूल खिला ही नहीं।
हर पंक्ति मन को छू लेने वाली ..विसंगतियों की इतनी सुन्दर संगति .. अद्भुत प्रयास ..बहुत बहुत बधाई ...
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।
सत्य वचन सर जी .....
ये प्रस्तुति बहुत ही उम्दा है.
इसके लिए आपको
धन्यवाद
जीवन की विसंगति को रेखांकित करती मार्मिक कविता।
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।
is sach me peeda bhi hai sundarata bhi .man ko chhoo gayi baat .bahut sundar .
sashkt shbd rachna!
जिसको यहाँ कंचन
रूप मिला
उसको प्रिय गेह..
मिला ही नही ।
आपने तो यह कह के और छलनी कर दिया ......
ऐसा क्यों ....?
सुन्दरता के साथ ही दर्द का रिश्ता होता है क्या .....?
"प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।"
बहुत ही खूबसूरत रचना है !
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।
अरुणेश मिश्र द्वारा 10:56 PM
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ ।
जीवन की यही ‘रस सरिता है ’।
हमारे बुजुर्ग कहते आए हैं ।
सुन्दर रचना।
प्रिय कैसी विसंगति
है जग की
बिना शूल के
फूल खिला ही नहीँ
अनेक विसंगतियों के साथ ही जीवन भी चलता है और फूल की तरह खिलता भी है...बहुत बेहतरीन रचना...तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं
मेरी नई रचना भी पढ़िएगा
नमस्कार
फूल और कांटे का साथ जग जाहिर है ..बहुत अच्छा लिखा है अपने
I appreciate your lovely post.
कितनी खूबसूरती से वास्तविकता का वर्णण किया है आपने। कुछ मिलता है कुछ छूट ही जाता है। सही कहा ।
सच है यही की दुख के साथ सुख है कांटे के साथ फूल है.
सुंदर छंद.
अतिशय सुंदर । आपकी रचना ने मुग्ध कर दिया ।
भ्रमरो ने किया
रसपान सुचारु
कभी अधरोँ को
सिला ही नही ।
sunder abhivykti
पहली बार ब्लॉग पर हाज़िरी हुई है...
उत्कृष्ट रचनाएं पढ़ने को मिलीं...
सिलसिला शुरू करते हैं.
आ हा हा..........
अति सुन्दर छंद - रचना,
मार्मिक व्यंग्य भी और काव्य सौष्ठव भी
अद्भुत ,प्रसंशनीय काव्य!
it is a very nice poem
एक टिप्पणी भेजें