रविवार, 24 अक्तूबर 2010

चित्तौड़ मे आयोजित मीरा महोत्सव पर एक छन्द । मीरा

विष दो या मुझे

अमरत्व ही दो

पति मान चुकी

घनश्याम को हूँ ।

इन बन्धनोँ मेँ

बँधना है नहीँ

सब त्याग चुकी

धन धाम को हूँ ।

अपना लिया है

अपने प्रिय को

मन दे चुकी

लोक ललाम को हूँ ।

मन मीरा बना

विष पीना पड़ा

अनुमान चुकी

परिणाम को हूँ ।

25 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

समर्पित मैं भक्ति के अभिराम को हूँ,

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर छंद।
जै श्री कुष्ण।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

रचना ने प्रभावित किया।

ज्योति सिंह ने कहा…

मन मीरा बना

विष पीना पड़ा

अनुमान चुकी

परिणाम को हूँ
waah bahut sundar .

' मिसिर' ने कहा…

बहुत सुन्दर छंद .....मीरा के भाव को पारिभाषित
कर गया !बधाई !

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

पंडित जी! एक महान संत कवि मीराबाई की भक्ति को नमन!

arvind ने कहा…

sundar chhand--sundar kavita..aabhaar

चैन सिंह शेखावत ने कहा…

behatreen h arun ji...
sunder...

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

bhakti bhaw se sarabor sundar rachna....man hee meeramay ho gaya

Anupama Tripathi ने कहा…

मीरा के दृढ़ प्रेम का
खूबसूरती से वर्णन .

Vishnukant Mishra ने कहा…

utsarg meyn jo sukh chipa hai,
prapti mey wah hai kahan.....
meera ka yah sheersh samarpn
aaj hai dekhta kahan...

Arunesh ... ji bahut sundar chand hai..

Asha Joglekar ने कहा…

मन मीरा बना

विष पीना पड़ा

अनुमान चुकी

परिणाम को हूँ ।
मीरा के विषपान को आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत खूबसूरती से जोडा है । सुंदर कविता ।

Amrita Tanmay ने कहा…

चरैवती -चरैवती आपके ब्लॉग पर आना हुआ . सर्वप्रथम आपको हार्दिक नमन ......... आपकी हर रचना के लिए एक साथ ही ........... बहुत सुन्दर ..........

बेनामी ने कहा…

अनुमान चुकी
परिणाम को हूँ !!!
wah kyaa khne !!!

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

हमेशा की तरह उम्दा भावावियक्ति.....
पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

अरुणेश जी,
भक्ति रस से ओत-प्रोत एक सुन्दर रचना!
जय श्री कृष्ण!
आशीष
---
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

प्रेम सरोवर ने कहा…

Meera ki samarpit bhav ki behatarin prastuti.

प्रेम सरोवर ने कहा…

Achha laga.. Arath amit ati akhar thore.

कडुवासच ने कहा…

... behatreen !!!

ASHOK BAJAJ ने कहा…

मन मीरा बना ,
विष पीना पड़ा ;

अनुमान चुकी,
परिणाम को हूँ ।

बहुत सुन्दर !!

लाल कलम ने कहा…

सुन्दर छंद

प्रेम सरोवर ने कहा…

Sudar avivyakti.PLz. visit my blog.

अंजना ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ....

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

वाह...अरुणेश जी...वाह!

कितनी प्रवहमानता के साथ छंद को निभाया है आपने... मज़ा आ गया! कई-कई बार गा-गाकर पढ़ा...और पढ़-पढ़कर गाया है मैंने इसे! कहीं कोई झोल नहीं!

हाँ...एक बात विनम्रतापूर्वक कहना चाहूँगा कि निम्न शब्दों की वर्तनियाँ संशोधित कर दीजिएगा-

बन्धनोँ मेँ...की जगह-- ‘बंधनों में’
नहीँ...के स्थान पर-- ‘नहीं’

ऐसा नहीं है कि आप इन शब्दों की सही वर्तनी नहीं जानते हैं... यह तो बस्स्स्स्स एक टाइपिंग त्रुटि है।
.....................
Note : अनुस्वार के लिए स्पेस+M वाली बटनें दबाने से काम चल जाता है...!

अरुणेश मिश्र ने कहा…

श्री जितेन्द्र 'जौहर' जी - आपके सुझाव का क्रियान्वयन किया जाएगा । परामर्श अनमोल है ।