अवगाहन मे उस
अमृत तत्त्व के
कौन कहे
अपरूप मे खोया ।
रश्मियाँ दिव्य
विकीर्ण हुई
तो लगा अनमोल
स्वरूप मे खोया ।
साध लिया जब
शाश्वत शक्ति ने
मानस बोध
अरूप मे खोया ।
धार मिली रसधार
अनन्त मेँ
अन्तर रूप
अनूप मेँ खोया ।
शनिवार, 9 अक्टूबर 2010
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19 टिप्पणियां:
waah aruNesh jee ek alag see baat hai
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
माँ सब जग की मनोकामना पूर्ण करें!
जय माता दी!
बहुत सुंदर।
बहुत सुंदर।
... bahut sundar ... jay maataa dee !
माँ की शक्ति असीम है, सब समेटे निज अन्तर में।
प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.
सुंदर और भावपूर्ण कविता।
सुन्दर श्रृद्धा-सुमन माँ के चरणों में ,
भावपूर्ण छंद !
ati uttam ,mujhe itni bhayi ki main kai baar padhi .maa teri mahima aparampar hai ,jai gati jai haarni jai durge ambe teri jai jai kaar ho .
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सुन्दर! भावपूर्ण!
आशीष
--
प्रायश्चित
अति सुंदर -गरिमामयी भक्तिपूर्ण रचना -
हार्दिक बधाई एवं शुभ्स्काम्नाएं -
bhakti -ras me dubi aapki yah kavya rachna anmol hai.
shabdo ki gahrai me dub gai.bahut bahut prashanshniy prastutikaran.
poonam
wah. bahut sunder.
PHLI BAR AAJ ACHCHHI KAVITA PADI HAI,SADHUVAAD.
साध लिया जब
शाश्वत शक्ति ने
मानस बोध
अरूप मे खोया ।
विजयादशमी हार्दिक शुभकामनाएं ...!!
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति......शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर है ये कविता...
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