शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

माँ की असीम शक्ति एक छन्द

अवगाहन मे उस

अमृत तत्त्व के

कौन कहे

अपरूप मे खोया ।

रश्मियाँ दिव्य

विकीर्ण हुई

तो लगा अनमोल

स्वरूप मे खोया ।

साध लिया जब

शाश्वत शक्ति ने

मानस बोध

अरूप मे खोया ।

धार मिली रसधार

अनन्त मेँ

अन्तर रूप

अनूप मेँ खोया ।

20 टिप्‍पणियां:

Girish Billore Mukul ने कहा…

waah aruNesh jee ek alag see baat hai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
माँ सब जग की मनोकामना पूर्ण करें!
जय माता दी!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर।

कडुवासच ने कहा…

... bahut sundar ... jay maataa dee !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

माँ की शक्ति असीम है, सब समेटे निज अन्तर में।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सुंदर और भावपूर्ण कविता।

' मिसिर' ने कहा…

सुन्दर श्रृद्धा-सुमन माँ के चरणों में ,
भावपूर्ण छंद !

ज्योति सिंह ने कहा…

ati uttam ,mujhe itni bhayi ki main kai baar padhi .maa teri mahima aparampar hai ,jai gati jai haarni jai durge ambe teri jai jai kaar ho .

Smart Indian ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!

Umra Quaidi ने कहा…

लेखन के लिये “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।

जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव जीते हैं, लेकिन इस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये मानव जीवन ही अभिशाप बन जाता है। अपना घर जेल से भी बुरी जगह बन जाता है। जिसके चलते अनेक लोग मजबूर होकर अपराधी भी बन जाते है। मैंने ऐसे लोगों को अपराधी बनते देखा है। मैंने अपराधी नहीं बनने का मार्ग चुना। मेरा निर्णय कितना सही या गलत था, ये तो पाठकों को तय करना है, लेकिन जो कुछ मैं पिछले तीन दशक से आज तक झेलता रहा हूँ, सह रहा हूँ और सहते रहने को विवश हूँ। उसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह आप अर्थात समाज को तय करना है!

मैं यह जरूर जनता हूँ कि जब तक मुझ जैसे परिस्थितियों में फंसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, समाज के हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यह भी एक बडा कारण है।

भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस प्रकार के षडयन्त्र का कभी भी शिकार हो सकता है!

अत: यदि आपके पास केवल कुछ मिनट का समय हो तो कृपया मुझ "उम्र-कैदी" का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।

थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।

http://umraquaidi.blogspot.com/

उक्त ब्लॉग पर आपकी एक सार्थक व मार्गदर्शक टिप्पणी की उम्मीद के साथ-आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

सुन्दर! भावपूर्ण!
आशीष
--
प्रायश्चित

Anupama Tripathi ने कहा…

अति सुंदर -गरिमामयी भक्तिपूर्ण रचना -
हार्दिक बधाई एवं शुभ्स्काम्नाएं -

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

bhakti -ras me dubi aapki yah kavya rachna anmol hai.
shabdo ki gahrai me dub gai.bahut bahut prashanshniy prastutikaran.
poonam

mridula pradhan ने कहा…

wah. bahut sunder.

cbjainbigstar ने कहा…

PHLI BAR AAJ ACHCHHI KAVITA PADI HAI,SADHUVAAD.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

साध लिया जब
शाश्वत शक्ति ने
मानस बोध
अरूप मे खोया ।

विजयादशमी हार्दिक शुभकामनाएं ...!!

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर, भावपूर्ण और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति......शुभकामनाएँ।

अर्चना तिवारी ने कहा…

बहुत सुंदर है ये कविता...